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दो बार अमेरीका,दुबई और लन्दन जाने का अवसर मिला, इस बार फिर अमेरीका ( कोलंबस ) जाने का और रहने का अवसर मिला . एक बड़ी विचित्र बात सामने आयी वह,यह की यहाँ पीपल,नीम और बरगद जैसे बड़े पेड़ नहीं मिले.इन्हें ढूँढने की जरूरत क्यों हुयी क्योंकि मुझे एक देसी दवाई बनाने की जरूरत हुयी,जिसमे नीम के कुछ पत्तों की जरूरत थी.पर नीम जैसे बड़े पेड़ यहाँ नहीं लगाए जाते.वर्गीनीया,चिकागो,न्यू यार्क,नेव्जरासी,वाशिंगटन और पूरे इस देश में ऐसे बड़े पेड़ नहीं मिलते.
विचार करने पर,चिंतन और मनन करने के बाद पाया कि भारत में इन बड़े पेड़ों के विक्सित होने के कारण ही शायद हम भारतीय विक्सित होने से रह गए हैं.दूसरे शब्दों में कि हमारा विकास इनकी जड़ों में हुआ है ,हम भारतीय यह मानते हैं की जिस घर या घर के आसपास नीम का पेड़ होता है ,वहाँ कोई बीमारी नहीं आ सकती,हम भारतीय इन पेड़ों की पूजा भी करते हैं ये पेड़ पूजनीय हैं.इन पेड़ों को काटना भी पाप समझा जाता है.नीमका दातून दन्त रोगों को पास नहीं पटकने देता.बरगद के पेड़ की छाया का तोकहना ही ही क्या,बैठ जाएँ तो क्या मजाल की एक इंच भी धुप आपको छू भी जाए?इस पेड़ के नीचे छोटे छोटे पेड़ तो पनप ही नहीं सकते.इन्ही सब विशेश्ताओंके कारण इसी रूपमे हमारी जड़ें विक्सित हुईं हैं.ये पेड़ हमारी थाती हैं, हमारी धरोहर हैं, ये हमारे देवता हैं.इन्ही के आशीर्वाद से हम जी रहे हैं. ये ही हमारी पहचान हैं.
यहाँ अम्मेरीका में इन पेड़ों कोलगाना अनुमती के बिना संभव नहीं है यही कारण है की एमिग्रतिओन के समय यहाँ पूछा जाता की क्या आप पेड़,पौधे, खाद पत्तियान अपने साथ ले जा रहे हैं?मेरे ख्याल से भारतीयोंकी जड़ों को जमाकर इन्हें विकसिट होने देना इन अमेरिकन्स को सहनीय नहीं है.क्योंकि भारतीयों की बहार जो है यहाँ..
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