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क्या यह सही सोच है?

सपाटबयानी
सपाटबयानी
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मेरे मित्रो,एवं पाठकों मुझे सलाह दे सके तो मेहरबानी,

लोग अब सही सोचने वाले भी हैं.कुछ मरने से पहले अपनी आँखे दान कर जाते हैं ,तो कुच्छ और कोई ऐसा काम कर जाते हैं, जिससे उन्हें सुकून मिल सके.और किसी की जिन्दगी बन, संवर जाएi

मेरी आयु ६५ है, पेशन प्राप्त करता हूँi, मैं एक ऐसा ही काम करके जाना चाहता हूँ जिससे किसी का भला हो जाये इससे मुझे सुकून मिलेगा.

एक ऐसी बेसहारा लड़की / महिला जो जरूरतमंद हो ,को अपना लाइफ पार्टनर बनाना चाहता हूँ वह कागजों पर मेरी पत्नी होगी,केवल मेरे बाद पेंशन पाने के लिए i.मेरे साथ रह भी सकती है यदि उसकी इच्छा है या सहारा नहीं है तोi वरना अब जैसे ,जहां भी रह रही है रहे ! उसका चरित्रवान होना जरूरी है यह पहली शर्त है.जितनी कम उम्र की होगी उतना ही पेंशन का लाभ ज्यादा अवधि तक का मिलेगा उसे,वरना बेसहारा महिला हो तो और भी अच्छा i यह स्पष्ट हो की उसका पेंशन के अलावा और कोई भी अधिकार नहीं होगा इसकी व्यवस्था पहले ही कर दी जायेगी.मेरे ब्लॉग को देखने वाले मित्र मेरा मार्ग दर्शन कर सकें और मुझे बता सकें  तो मै तो आभारी हूँगा ही, किसी और का भला हो जाएगा.क्या मेरी यह सोच सही है?मेरी सोच सही लगे, तभी बताएं सधन्यवाद .

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