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इबादत का असर?

सपाटबयानी
सपाटबयानी
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हमने इतिहास में पढ़ा था की मुग़ल सम्राट बाबर का बेटा हुमायूं जब बीमार पडा तो कई प्रकार के इलाज से भी जब ठीक नहीं हो सका तो सलाहाकारों ने सुझाया – आप अब परवरदिगार को ही मिन्नत करें वही आपके कलेजे के तुकडे को ठीक कर सकते हैं. बाबर ने अगले दिन का इंतज़ार न करते हुए खुदा से इबादत की के मेरे बेटे को ठीक कर दो,उसके बदले मेरी जान लेलो यह कहना ही था की बाबर इस जहां से विदा हो गए और हमायूं उसका बेटा ठीकहो कर खडा हो गया.क्या न जादू था इन मुगलों की इबादत में? क्या ऐसा जादू कही और है?एक बार मैंने भी एक अवसर आने पर ऐसा ही किया बिलकुल सचे मन से, लेकिन सच मानीये कुछ भी नहीं हुआ तब से सोचता हूँ की क्या हम हिन्दुओं से इन मुसलामानों की इबादत ज्यादा प्रभावी है?सही में समाजका एक बड़ा वर्ग इनकी खुदा के प्रती सची भावनाओं को सही मानता है यही कारण है की हम हिन्दूलोग दरगाहों,में जाते देखे जाते हैं जब की ये लोग हमारे मंदिरों और गुरुद्वारों में नहीं जाते.अजमेर शरीफ की दरगाह,आगरा की शेख सलीम चिस्ती की दरगाह में हिन्दुओं की जो श्रधा है उसे हर कोई जानता है.और मानता भी है .हिन्दुओं के धर्म स्थलों में मुसलमानों का प्रवेश वर्जित नहीं होना चाहीये ,दरगाहों में हम हिन्दुओं के प्रवेश पर तो कोई रोकनहीं है! यह भाई चारे के बढाने के लिए भी जरूरी है .

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