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देश की हालत पर लोग रोज तमाम बातें लिखते हैं जो उनके आज तक दुखी होने को प्रमाणित करते हैं ! मेरे ब्लोग्स पर विद्वानों के जो विचार आते है उसमे देश में बदलाव की चाह की जरूरत बतायी जाती है , वे यों ही तो नहीं कहते हैं पर किस प्रकार के बदलाव होने चाहिये यह नहीं बताया जाता है.इसके दो कारण हैं या तो वे यों ही कह और लिख देते हैं या उन्हें बदलाव के प्रकारों की जानकारी ही नहीं ही.-बदलाव हो सकते है—१-राजनैतिक ,२-संवैधानिक,३-प्रशासनिक,या अन्य .जो मैं भी नहीं बता सकता!प्रशासनिक फेर बदल तो आये दिन होती रहती है ,राजनैतिक भी बदलाव से भी कुछ नहीं हुआ है,बी जे पी आने से भी क्या हुआ?,और कोई भी आ जाए तो क्या होता है?सिवाय इसके की जनता कहती है की हमने वोट देकर फलां पार्टी को हटा दिया या जीता दिया!लेकिन आज जिस मांग के लिए देश जल रहा है,आन्दोलन हो रहे हैं क्या उस दिशा में कोई प्राप्तीहो सकी है?केंद्र में बी जे पी भी आयी थी क्या कुछ हो सका? इसी तरह यूं पी में मायावती के स्थान पर अब यदि अखिलेश आगये तो क्या कोई फरक है? तो क्या है हल ? नहीं है किसी को भी मालूम? यदि मैं सही कह रहा हूँ तो यह हो हल्ला क्यों ?,कांग्रेस हट जाये, या रहे कोई भी परिवर्तन नहीं होनेवाला! अब ” संविधान में परिवर्तन ” ही एक मात्र हल है उसके बाद वर्त्तमान चुनाव,सांसद का दागी न होना,सरकार चयन आदि आदि अन्य कारन जिनके कारण आज सरकार को परेशानी हो रही है, “संविधान में बदलाव “ही से संभव हो सकते हैंi तब चुन कर आने वाले प्रित्निधी ऐसे होंगे जिनकी जरूरत है जनता को.वर्ना सब है बेकार.आप हटवा के देखें इस सरकार को, कोई भी सुधार नहीं होगा.! हाँ , एक ” प्रयोग ” हो सकता है! आज कांग्रेस इस शर्त पर स्वेछा से गद्दी छोड़ दे की यदि आप जैसा चाह रहे हैं वैसा शासन नहीं दे पाए तो यह गद्दी हमें ही वापिस करनी होगी? चुनाव पर पैसा भी नहीं बहाया जाएगा!हम १९१४ के बाद अगले ५ साल तक रहेंगे.
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