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कहावत है की “जब अपना ही सिक्का खोटा हो तो…” विपक्ष की सबसे मजबूत पार्टी बी जे पी अब कहाँ खो गयी?आपसी कलह का कारण ही ले डूबा इस पार्टी कोऔर तो और नितिन के बचकाने कदमों ने इसकी रही सही कसर भी पूरी कर दी. न जाने यह अनुभव हीन कैसे इस गद्दी पर आ गए?संघ को सोचना चाहीये था की क्या उनकी पसंद सही थी?पुराने नेता मुरली मनोहर जोशी जी का नाम सुने तो एक अरसा हो गया,तेज तर्रार अरुण,सुषमा,राजनाथजीकहाँ गए? सब पी एम् की दौड़ में अपने को आगे कर रहे ये नेता थक कर कहीं आराम करने चले गए है क्या?इनकी सूरतें देखे बहूत समय हो गया है, ऐसा न हो की इनकी शक्लें ही भूल जाएँ हम लोग?अब तो नरेंदर मोदी का नाम भी कम ही सुनायी देता है यह है आपसी फूट? बेचारे आडवानी जी की तो बोलती ही बंद करा दी गयी !कहीं यह भी कांग्रेस की चाल तो नहीं है?इस सब कदमों से काग्रेस को ही फायदा होना है ,यदि यह बात सही है तो क्यों नहीं समझ सकी बी जे पी ?अरे अरुण,सुषमा राजनाथ,जी कभी कभी तो आजाया करें दूर दर्शन पर,दर्शन देने के लिए?नहीं तो ये भक्त कहाँ जायेंगे?क्या आपलोगों को अन्ना हजारे और रामदेव ने कोने में तो नहीं बिठा दिया है?यह बात इसलिए जहन में आरही है क्योंकि सार्वजनिक स्थानों पर नितिन गडकरी रामदेव के चरण छू कर उन्हें अपने सर पर जो बिठाते फिरते हैं क्या नतिन अविकसित बुद्धि वाले हैं?सही है विचार लोगों का,की बी जे पी में सबसे कमजोर है तो वह है नितिन गडकरी.उन्हें राजनीति आती ही कहाँ है?
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