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सन्यासी कौन?-“पाठकनामा” आगरा के लिए

सपाटबयानी
सपाटबयानी
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महोदय,भारत में सन्यासी की परिभाषा क्या है? यह हमें जानना जरूरी है!जो गेरुए वस्त्र पहने बड़ी सफेद दाढी पर काला रंग करे,जनता को लूट कर धन संग्रह करे और लोगों को कहे की कला धन बाहर लाओ,सबसे बड़ी विशेश्ता यह की , वह चरित्र हीन हो ! वही सही मायने में सन्यासी है! वही बाबा भी है, ऐसे बाबा जी नेताओं को भी सेट करते हैं,की समय आने पर वे उनकी मदद ले सके! बी.जे पी के नेता गडकरी कहते हैं की भारतीय संस्कुर्ती के अनुसार सन्यासीयों के चरण छूने चाहीये, सही में उनके लिए यही सन्यासी हैं और यही परिभाषा है!
अब सवाल उठता है की क्या सन्यासीयों को नेताओं के पास जाना चाहीये?उनका धन दौलत से कोई सरोकार होना चाहीये?यदि नहीं तो धन और दौलत,काला धन क्या होता है क्यों मालूम होना चाहीये? भारात का धन विदेश से आने पर गरीबी दूर होगी, यह अर्थ शास्त्र उन्हें कैसे मालूम हो गया? यदि यह दुनियादारी मालूम है तो आप कैसे सन्यासी हैं? समझ से बाहर है! ऐसे लोग बहूत ही चतुर और चालाक होते हैं, खुद को तो सन्यासी नहीं कहते पर गडकरी जैसे चतुरों से अपने को कहलवाकर पैर छुलवाते जरूर हैं! क्या गडकरी अज्ञानतावश ऐसा कर रहें हैं या वे सन्यासीयों को “चने के झाड”पर चदा रहे हैं ? क्या सन्यासी कभी हेलीकोप्टर,हवाई जहाज पर या ५ sataar होटलों में या बहूत ही आलीशान आशरमों के मालिक हुआ करते हैं? धन दौलत से तो उनका दूर दूर का वास्ता ही नहीं होता! यदि होता है तो ये ढोंगी हैं , सन्यासी तो बिलकुल ही नहीं! नितिन गडकरी ने आदवाडी जी, अरुण ,सुषमा ,राजनाथ, जोशी व मोदी जी को पछाड़कर यदि अध्यक्ष की कुर्सी हथिया ली तो जाहिर है की धोंगीयों को सन्यासी कहकर अपना उल्लू ही सीधा कर रहे हैं!

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