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गुस्सा और क्रोध दो सामानार्थी शब्द हैं ,कहा जाता है की गुस्से में विवेक शून्य हो जाता है.इस समय में लिया गया कोई भी निर्णय सही नहीं होता ,गुस्से से कभी कभी हार्ट अटैक भी होने की संभावना रहती है.पर वश में हो तब न. इस समय पानी पीना लाभकारी होता है.गुस्सा शांत हो जाता है.पर गुस्से के समय तो विवेक मर जाता है तब कहाँ रहता है पानी पीने का अक्ल .गुस्से से एक लाभ और भी देखा गया है ,कभी कभी आपको जब बहुत ही सताया जाता है ,आप अपने को कई कई बार रोकर ,शांत कर बिना कोई उत्तर दिए जब चुप हो जाते हैं तो एक सीमा के बाद कभी कभी आप इतना सहते सहते फट पड़ते हैं .यह आपके बस में ही नहीं रहता! उस समय आप अपनी पूरी ताकत के साथ उबल पड़ते हैं और गुस्से के चरमसीमा तक चले जाते हैं यह नहीं सोचते की अंजाम क्या होगा? उस समय विवेक तो मर ही जाता है! आप देखेंगे की अगला आदमी आपके इस उग्र रूप से डर जाता है और आपके इस रूप से भय खाकर वैसा ही करने को तैयार हो जाता है जैसा आप चाहते हैं.आप के लिए इस समय का गुस्सा लाभप्रद साबित होता है . मेरा यह मतलब नहीं है की आप ऐसा करें? यह तो उस समय की शक्ति ही होती है! जिसके लिए आप पहले से तैयार नहीं रहते! आप कभी भी ऐसा सोचकर न जाईयेगा की आज गुस्सा करके काम बनवा लूंगा, आप घाटे में रहेंगे!
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