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जागरण जंक्शन फोरम में एक महत्वपूरण और संवेदनशील मुद्दा उठाया गया है विषय है ‘ जिस्मानी रिश्ते के लिए क्या जरूरी है समाज की या निजी रजामंदी? ‘ जिस पर पाठकों के विचारों को आमंत्रित किया गया है, उसी माला की कड़ी में मैं अपनी बात रख रहा हूँ:-इससे पहले की इस विषय पर कुछ कहा जाए, यह बताना जरूरी है की “18 अगेन” क्या है? इसका शाब्दिक अर्थ है- 18 साल की उम्र को ( अगेन ) फिर से प्राप्त करना! पर 18 ही क्यों, 15 या 16 क्यों नहीं ? क्या ये महिलायें 18 की अपेक्षा 15 या 16 की नहीं चाहेंगी दीखना? सो इसका नाम “15 अगेन” रखना चाहीये था! यह “18 अगेन” फार्मा द्वारा निकाली गयी क्रीम है जिसे गुप्तांगे में लगाने से शायद आप का कौमार्य नया लगेगा, आप एक दम वर्जिन ही मानी जायेंगी,उसके लिये जिस से आप सेक्स कर रही है! इस प्रकार समाज में यह भय भी नहीं रहेगा की यह लड़की पहले से कुछ कर चुकी है और वह निडर हो यही सब करने से भी गुरेज नहीं करेगी और जब इसे सामाजिक अनुमति मिल जायेगी तब तो यह समाज कितना भी अपने को विकासित माने, पर हमेशा ही घर्णित बने रहने से बच नहीं पायेगा! हाँ ,यह विचार तो पुराने लोगों का है तब नए लोग इस पर शायद ही आपत्ति करें! क्योंकि पूरा समाज ही इस मत का जो हो जाएगा! इससे पहले गर्भ से बचने के लिए जो उपाय हैं उनके उपयोग के कारण भी तो सेक्स किया जाना होता रहा है जब की लडके और लड़कियाँ इसका गलत ही प्रयोग करने लगे हैं, आप महानगरों में चले जाएँ वहां के माल्स में ये लडकीया और लडके किस हाल में बैठते और घूमते हैं आप को अजीब लगेगा? वहां के सुरक्षा कर्मी भी सार्वजनिक स्थलों पर इसे नहीं रोक पाते,तब कोई क्या करे?आज महिलाओ को अपने कौमार्य को हासिल करने के लिए के लिए छटपटाना पढ रहा है,क्यों? हिन्दी में महिला और लड़की का अंतर,विवाहिता और कुंवारी का होता है ,इसलिये इस अर्थ में महिलाओं को कौमार्य वापिस हासिल करने की क्यों है जरूरत? जब की उसकी शादी हो गयी है, बाल बचे भी हैं ही, अपने पति के साथ सब ठीक चल रहा है तो क्यों यह चाह? इसका मतलब यदि यह है की वह और मर्दों के सामने भी लड़की बने रहना/दिखना चाहती है तो अलग बात होगी! उसके जीवन की सफलता इसी में है की वह अपने बच्चों को पालपोस कर बड़ा करे,अपने बच्चों और पति के हाथों अर्थी पर जाकर जीवन की सफलता प्राप्त करे! !.क्या वह हमेशा ही कुवांरी बन कर रहना चाहती है, तो क्यों? फिर यदि कौमार्य ही बनाए रखना चाहती हैं तो इस आयु के साथ थुल-थुल वाला शरीर कहाँ ले जायेंगी? आयु को आज तक भी क्या कोई छिपा सका है? चाहे कितने भी जतन कर लो और पार्लरों में चले जाओ? महंगी सर्जरी का बोझ सहना हर एक के बस का है नहीं, फिर आपका पति जब सुहागरात को भोग चुका है तो क्या हर रात यही सुहागरत मनायेगा? वह तो जानता है की यह अवसर एक बार का होता है! हाँ ,यदि महिलायें, पति के सिवाय अन्य मर्दों को इस हथियार से ऋझाना चाहती हों तो ऐसी महिलाओं को हम इस चर्चा में नहीं लेते हैं.हाँ कुवारी लड़किया चाहे जितनों के साथ भी सेक्स कर लें “१८ अगेन” का लाभ जरूर ले सकेंगी!
पोस्ट में कहा गया है की शादी से पहले अपनी मर्जी से सेक्स न करना या उसकी छूट पर रोक लगाना पिछडापन है, और इसके अभाव में हम पाश्चात देशों की तरह नहीं हो पायेंगे, तो ऐसे विचारों के विद्वानों से मेरा निवेदन है की क्यों नहीं यह काम सार्वजिनक स्थलों पर नंगे हो कर करने की मांग रखी जाती, ताकि आप विकासितों से भी और विक्सित दीखे?
हमारा देश अलग -अलग जातियों और धर्मों वाला देश है,यहाँ की खूबी है “अनेकता में एकता और एकता में अनेकता” सब अपनी-अपनी रीतियों के हिसाब से चल रहे है, मध्य परदेश में कई ऐसी जनजातियाँ हैं जिनमे पति कई पत्निया या एक औरत दो,तीन पति रख सकती है,यह उनकी संस्कुरती है,रिवाज है, हमारे अन्य समाजों में शादी से पहले कौमार्य भंग करने की अनुमति यदि नहीं है तो क्यों उसकी वकालत की जारही है समझ से बाहर है? इसके लिए यह तर्क की लड़का सब कुछ पहले कर ले तो क्यों नहीं लड़की को इसकी छूट होनी चाहीये, यह तो भागवान से पूछना चाहीये की क्यों अलग रचना की थी लडके और लड़की की? इसका मतलब यह नहीं है की लड़कों को शादी से पहले छूट होनी चाहीये! समय बदल रहा है,पर क्या ऐसा भी नहीं होना चाहीये की शादी से पहले सब कुछ किया जाए ?फिर शादी का क्या कुछ आकर्षण रह पायेगा,क्या कुछ महत्व रह जाएगा? इस पोस्ट की पैरा-३ में कही गयी सब बातें सही हैं फिर भी फोरम ने यह सवाल उठाया है की क्या जिसमानी रिश्तों को बनाने के लिए समाज या निजी रजामंदी को रोकना इन लोगों की इच्छाओं को दमन करना नहीं होगा? आदि तीन सवालों का जवाब मांगा है मेरे हिसाब से तीनों सवालों का जवाब “नहीं” है ,बाकी तो भाई साब, इछाये तो अनंत है, क्या सभी पूरी होती है? फिर यह सेक्स की इच्छा तो पूरी होनी है, आपके माँ बाप ही सह्योग कर इसे पूरा करने के पक्ष में हमेशा ही रहते है , और यदि जल्दी भी है तो कह कर शादी कर लो, कहाँ दमन की बात है? कौन असम्भव बात है? दी.३.९.१२ की निर्भय हिमांशु जी ने अपनी पोस्ट ‘निजी रजामंदी बनाम समाज की आनुमति ‘ शीर्षक में इसकी स्वीकृती के पक्ष में लिखा है, जो की आप देखें और यदि आप भी सहमत हो सके तो कोई क्या कर सकता है? यह सभी को साफ़ है ,
आजकल सभी लड़के,लड़कियों की बात कहा तक करें?,शादी से पहले हर एक का कोई न कोई इतहास रहता है, यदि शादी के बाद मालूम हो भी जाए तो लड़का इस पर समझौता कर लेता है की तुम जो भी थी, जो किया अब शादी के बाद नहीं दुहरानी है उन पुराने दोस्तों से दोस्ती? अगर वह बेचारा समझौता नहीं करता है तो लड़की आरोप लगा कर दूसरे तरीके से फंसा देगी!
बस आज हमारे समाज में इसकी अनुमति खुले आम देना गलत ही होगा,इसके बदले हम अविकसित ही कहलवाना पसंद करेंगे! इन सब विचारों के मंथन से दर लग रहा है की हम,हमारा समाज और सरकार कितनी भी रोक लगा दे इसे रोक पाना असम्भव सा लग रहा है! जिस समाज में टी वी पर रात के लेट आवर्स में घर के अन्दर सगे भाई बहन ब्लू फिल्म देखते-देखते शारीरिक सम्बन्ध स्थापित कर लेते है, ऐसे समाज में इन चीजों को कोई कैसे रोक सकता है? अंत में कहना चाहूंगा की “अगेन १८” पर पूरी तरह से रोक लगानी चाहीये ,लेकिन फिर चोरी-चोरी बिकने को कौन रोक सकेगा?
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