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माता श्री और ममता -jagran junction forum

सपाटबयानी
सपाटबयानी
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आज हम वरिष्ठ नागरिक जो नाना, दादा हो गए हैं ,अब अपने माँ बाप को याद कर पछताते हैं,की हमने उनकी सेवा तो दूर उनका ध्यान तक नहीं रखा! हमें अब उनकी ममता का महत्व मालूम पड़ता है. इस पछतावे का अब कोई उपाय ही नहीं है की उसका प्रायश्चित किया जा सके?अब समय बीत गया है.वह माँ जो अपने को गीले बिस्तर पर रहकर हमें सूखे पर सुलाने को हमेशा तत्पर रहती थी ,हमें खिलाने को सदैव आगे रहती थी चाहे उसे खुद को भूखा ही रहना पडा हो!
मैंने कल ही कहानी पदी जो मार्मिक और माँ के महत्व को समझाने वाली एक प्रेरक कथा है!
एक पति-पत्नी अपने छोटे बेटे के साथ मेले में घूमने गए. भीड़ तो थी बच्चा गुम हो गया, खोज बीन के बाद जब बच्चा नहीं मिला तो माँ रोने लगी, रो-रो कर उसका बुरा हाल हो गया,दौढ धूप के बाद बच्चा जब मिल गया तो पति ने पत्नी से कहा- अब हम यहाँ से जायेंगे? पर पत्नी ने कहा अभी तो मेला देखा ही कहा है, और थोड़ा रुक कर , मेला देखकर ही चलेंगे! पति नहीं माना और कहने लगा की तुमने एक घंटे बेटे से दूर हो कर अपना बुरा हाल बना लिया, मेरी माँ तो कई सालों से रो रही है मुझ से अलग हो कर!

यह कथा सही भी हो सकती है जो हमें याद दिलाती है अपनी ममता की मूर्ती को,माता श्री को ! इसलिये माँ का स्थान भगवान से भी ऊपर माना गया है पर जब माँ के बाद, उसकेमरने के बाद ही यह बात समझ में आती है, तब समय निकल जाता है ! दादी माँ का गाना आज भी गनगुनाया जाता है ” ए माँ तेरी सूरत से अलग भगवान की सूरत क्या होगी?” जब तुम्हे देख लिया तो भगवान को क्यों देखने की जरूरत है? भगवन क्या माँ से बड़ा है? इसी तरह अमिताभ बच्चन के पिटाश्री डा. हरवंश राय बच्चन जी की पुण्य तिथि पर एक कवि सम्मलेन में एक कवि ( नाम याद नहीं आ रहा है) ने कहा था की वे लोग भाग्यशाली है जिनकी माँ है और वे तो और भी भाग्यशाली है जो अपनी माँ का ख्याल रखते है! क्यों की माँ अपने स्नेह से, अपने समर्पण से उसे जैसे पालती है वैसे शायद और कोई नहीं पाल सकता? जब माँ बच्चे को स्तनों से दूध पिलाती है तो वह दूध पीते पीते दूसरा पैर माँ के दूसरे स्तन पर मारता है ,माँ यह दर्द सह के भी दूध पिलाना नहीं छोड़ती,क्या ऐसी पालनहारा,सहनशील कोई और हो सकती है इस जमीन पर?

आज हम अपने परिवार को देखते है माँ बाप को तो देखना तो दूर उन्हें भूल जाते है .और इस उम्र में जब याद आती है तब वह ममता देने वाली हम से दूर हो गयी होती है! एक माँ अपने दस बेटों को पाल सकती है एक बाप अपने दस बच्चों को पाल सकता है पर दस बच्चे अपने एक माँ बाप को नहीं पाल सकते? हम यदि दो-तीन भाई हैं तो हर भाई यह सोचता है की मेरा माँ-बाप ही नहीं है उन भाईयों का भी तो है, वह जाके देखे! पर भाई साब आप ही अपने माँ-बाप की देख-रेख कर लें तो आज जीवन के अंतिम छोर पर आकर आप को जो सुकून मिलेगा वह अनिर्वचनीय होगा, उसे बयान कर ही नहीं सकते? हम न भूले की आज हम इन्ही के कारण है , जब यह बात नहीं भूलेंगे तो उनका ख़याल रखना भी नहीं भूलेंगे! तब हमें हमारे बेटे भी नहीं भूल सकेंगे यह निश्चित मानीये! शायद इसी को तो संस्कार नहीं कहते? माँ ही है जो किसी के द्वारा अपना तिरस्कार नहीं सह सकती, पर बेटे के तिरस्कार को सह लेती है! यही कारण है की रामायण में भारत द्वारा तिरस्कार को माता कैकयी को सहना पडा था! जिसे मानस की धर्म भूमि में आचार्य शुक्ल जी ने सुंदर ढंग से बताया है!

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