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आज यह जानकर बहुत ही अछा लगा की आर्मी ऑफीसर और केद्रीय मंत्री सचिन पायलट जी ने वर्दी में आर्मी चीफ को सलूट दिया, हालांकि वे प्रोटोकाल में उनसे ऊपर है.पर अपने संस्कारों से यह नहीं भूलें हैं की वे यहाँ उनके मातहत है, सचिन को नमन करता हूँ. सचिन अपने पिता राजेश जी पायलट और दादाजी के सेनाओं में रहने के कारण ही यह सीख कर उनका नाम उपर रख सके है.सही हैं आप कितने भी ऊंचे पद पर हों यह न भूलें की इस समय आपाकी भूमिका क्या है?साहित्यकार राजेंद्र यादव ने सही कहा है “मानव के मन में एक और मन होता है जो उसे अपने वर्तमान में ही रहने को कहता है” सचिन जी राजस्थान के दौसा के है पर यह क्या है की हरयाणा जो इस प्रदेश के साथ ही लगा हुआ है, के मंत्री इतने कैसे भ्रष्ट हो गए ? चन्दर र्मोहन उर्फ़ चाँद,गोपाल गोयल कांदा,मदरेना और यूं.पी. के अमरमणि तिर्पाठी,एन. डी.तवारी ,आजम खान ने भी मंत्री हो कर भरी सभा में एक प्रशासनिक अधिकारी को बुरी तरह हरका दिया था, उस वक्त उन्हें अपने मंत्री होने की बात याद नहीं रही थी गुमान जो था उन्हें अपने मंत्री होने का जो .इनके अलावा और भी न जाने कितने मंत्री होंगे जो अपने दुष्कर्मो को छिपाने में कामयाब हो गए होंगे और प्रकाश में नहीं आ सके है.ये क्यों भूला गए की वे भारत की जनता का प्रिटीनिधित्व कर रहे है? हमें जनता ने हमारे उच्च चरित्र के कारण ही चुन कर भेजा है!पर उअनका नाश जो होना था! सही कहा गया है– “जब नाश मनुष्य पर छाता है पहले विवेक मर जाता है “ सो इनका विवेक मर गया था क्योंकि इनका नाश जो होना था? काश ये लोग सचिन जी से प्रोटोकाल को सीख सके होते! सचिन जी, ने मंत्री होकर भी सेनाध्यक्ष को सलूट दिया,यह इस समय के प्रोटोकाल की बात है क्योंकि इस समय सचिन मंत्री होकर भी मंत्री के स्वरुप में नहीं है, लेफतीनेंत होना और मंत्री के स्वरुप में होना दोनों अलग अलग बातें हैं. mujhe yaad hai jab baajpeee ji videsh mantree they tab ve aagraa me aaye the ek jan sabhaa ke sambhodhan ke liye,मैं उनकी वाक् पटुता को सुनने के लिए वहां गया था,अपने भाषण में उन्होंने कहा था की मंत्री होने का बड़ा मजा है कार में बैठो तो संतरी कार का दरवाजा ख्होलाते है बैठने पर उसे बंद करते हैं हर समय सलूट पर सलूट लगते है क्या न मजा है इस पद का, पर एक बात जो कहना चाहूंगा वह यह की हम मंत्री होने के बाद अपनी मर्जी से कुछ नहीं कर सकते हम कही बाजार में जाकर भांग नहीं पी सकते,लोग कहेंगे की सरकार का मंत्री सड़क पर भंग पी रहा है , मतलब की आप मंत्री बन जाने के बाद मंत्री के स्वरुप में ही रहेंगे आपका अपना कोई रूप नहीं होगा, जिसका हमेशा ध्यान रखना होता है .उपरोक्त मंत्री इस बात को भूल गए .कांदा यह भूल गए की वे मंत्री पद पर थे अब वे जूतों की दूकान वाले नहीं रहे हैं और यह भी भूल गए की ” जो ना कहे उसे छेड़ो मत और जो हाँ कहे उसे छोडो मत” इस कांदा ने ना कहने वाली गीतिका को छेड़ दिया, कहाँ रहा प्रोटोकोल? आप सदैव ही अपने पद और प्रोटोकाल को ना भूलें यह जरूरी है
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