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कभी कभी सोचता हूँ क्यों यह भेद है मनुष्य में की कुछ ऐसा कर जाते है, जो सदीयों तक लोग याद रखते है उनको ! कुछ यों ही चले जाते है बिना कुछ किये? हम आजाद नहीं बन सके,गांधी,प्रताप,बोस,क्यों नहीं बन सके? क्या इस दरिंदो की दुनिया में किसी को न्याय न मिल पाने से कुछ कर सके है उनके लिए? नहीं, ना? हिन्दी साहित्यकार आचार्या रामचंद शुक्ल जी ने कहा है की “जो किसी की खुशी देखकर खुश नहीं होता,किसी के दुःख में दुखी नहीं होता ,उसके जीवन में रखा ही क्या है ,उसका जीवन तो मरुस्थल की यात्रा है “,इसी तरह साहित्यकार सुदर्शन जी ने अपने जीवन में कई रचनाये की, पर ” हार की जीत ” एक कहानी के कारण अमर हो गए.आचार्य शुक्ल जी ने तमाम निम्बध लिखे,उनके निम्बंधमनी ग्रन्थ की सार कही जाने वाली सात पंक्तियों ने एक छाप पैदा कर दी जो भुलाए नहीं भूल सकते.,,गायक येशुदास ने एक गाना ” गोरी तेरा गाँव बड़ा प्यारा——–” गाकर अपने को अमर बना दिया, सुदर्शन जी ने एक गजल “ये दौलत भी ले लो ,ये शौहरत भी ले लो——–” पेश कर अमरत्व को छू लिया,अंकुश की आरती “इतनी शक्ती हमें देना———-” सुनकर न जाने कितने लोग भाव विभोर हूँ जाते होंगे ? इसी तरह इसी फिल्म में बेबस लड़की की साथ अन्याय होकर अपनी जान दे दी और उसकी अस्मत लूटने वाले जब पैसे के बल पर बच निकलते हैं तो जान पर ख्हेल कर उन्हें ख़त्म कर सकने वाले चार लोग उन्हें समाज से हमेशा के लियए ही हटा देते है तो क्या आप ऐसा कुछ नहीं कर सक्ते? आज कल गोपाल कांदा पुलीस से या पैसे के बल पर बच भी जाते है तो कोई उसे “जान के बदले जान” के सिद्धांत पर सजा दे कर कुछ कर जाने को आगे नहीं आ सकता?,क्या मदरेना,चंदर मोहन,अमरमणि त्रिप्पाठी,और गोपाल कांदा जैसे यूं ही फिर लड़कीयों को प्रलोभन देकर उन्हें आत्म ह्त्या करने को मजबूर करते रहेंगे? आज यदि राजनीति में कुछ करने को है तो सामाज में उससे ज्यादा बहुत कुछ करने को बचता है ! तो बन जाईये आधुनिक गांधी,बोस,आजाद,झांसी की रानी या फिर महाराणा प्रताप!
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