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हरेश महोदय जी, आपका लेख पढ़ा,आज नयी नहीं पुरानी बातों को याद करके आपने हमारे विचारों में नयी स्फूर्ति को जगाया! आपको इसके लिए बहुत धन्यवाद! हम क्यों भूल जाते है की हिन्दी को ससम्मान , हर भारतीय देख रहा है,पता नहीं हम और क्या चाहते हैं हिन्दी से? क्या,हम लोग १४ सितम्बर के दिन इस हिन्दी पर लिख और बोल कर उसका महत्व कम नहीं कर रहे हैं? आप की मांग सही है इसमे सरकार क्या कुछ करे ? इन विभिन्न विचारों के देश में जहां तमाम समस्याए हैं सबकी सुननी और माननी पड़ती है, वहां आप क्या और चाहते हैं? हिन्दी को सम्मान नहीं मिल रहा है,हम यदि हर बार यही रोते रहेंगे तो उसका सम्मान कम ही कर रहे हैं,यह नहीं भूलना चाहिये हमें? हिन्दी पर तमाम सामग्री छपती है, अवसर मिलते है इस पर काम करने के,हर राज्य में प्रचार सभाओं द्वारा इसके विकास को गति दी जाती है यह अलग बात है की हम उस पैसे का सही उपयोग नहीं कर स्वयम ही डकार जाते हैं,यदि ऐसा है तो सरकार की गलती क्या है इसमे? मैं तमाम अहिन्दी राज्यों में रहा हूँ , मैंने इन्हें बहुत ही नजदीक से जाना है, देखा है मिजोरम में हिन्दी अधिकारी रहा हूँ, दो सालों ( 1984-1986 ) तक हिन्दी महाविद्यालय का प्राचार्य रहा हूँ , (1991-1993 ) तक पूर्वांचल के सातों राज्यों ( seven sisters ) का ‘रीजनल डायरेक्टर’ भी रहा हूँ,सो क्या मुझसे कोई ज्यादा जान सकता है ?,हिन्दी के नाम से भले ही कम फ़ायदा हुआ हो , पर देश को और कई फायदे हुए हैं,.यह भी है की आज लोग हिन्दी के नाम से अपना घर ठीक कर रहे हैं, पूरी की पूरी अनुदान राशि ही अपने विकास पर लगा रहे है. तो सरकार क्या कर्रे? इस माध्यम से देश की एकता जरूर बढी है ,जिसे हिन्दी के नाम पर बनाए रख रही है सरकार! सरकार सब जानती है,मैं सरकार का पक्ष नहीं ले ले रहा हूँ,सत्तर के दशक से पहले पूर्वांचल के राज्यों को कोई जानता तक नहीं था और हमारा इन राज्यों से कोई सम्बन्ध,कोई पहचान नहीं थी या कम थी ,हिन्दी के कारण ही आवागमन बना, तब ये लोग हमें और हम इन्हें जानने लगें हैं,वरना उस समय ये लोग कहते सुने जाते थे की ‘वी आर नॉट इंडियन.!’आज ये प्रदेश अपने को भारतीय मानने लगे हैं यह देश की एकता को बनाए रखने के लिए हिन्दी की बहुत बड़ी भूमिका मानी जानी चाहिये!हिन्दी के अध्यापकों के नाम पर इन अहिन्दी भाषी राज्यों में तमाम नौकरीयाँ दी गयी हैं और ये लोग वहां इस राष्ट्रीय भाषा का प्रचार प्रसार भी कर रहे हैं अपनी अपनी शक्ती और बल के हिसाब से!आज हम न जाने कितने दिवसों, हिन्दी दिवस,अध्यापक दिवस, बाल दिवस,श्रुमक दिवस,फादर दिवस,मातर दिवस,बाल दिवस,महिला दिवस,बालिका दिवस,डाक्टर और इन्जीनीअर न जाने और कौन कौन से दिवस मनाने लगे हैं और भी आविष्कार कर मनाने की फिराक में हैं? सच मानीये हिंदी अपना काम खुद कर रही है और खुद ही आगे बड़ रही है, हम हिन्दी दिवस मना कर उसके विकास को न तो रोके और न ही उसका अपमान करें! सही तो यह भी है की देश में किसी भी दिन को मनाकर उसका महत्व ही कम कर रहे हैं.आपको यह बताने में संकोच हो रहा है क्योंकिन जाने ऐसा क्यों लग रहा है की सूरज को दीपक दिखा रहा हूँ जो की मेरा असफल प्रयास ही है,आप तो संवाददाता है.कहा जाता है की “जहाँ न पहुंचे दाता वहां पहुंचे संवावदाता”,आप मेरी बातों से थक न जाएँ इसलिये अब अंतिम दो वाक्य कह कर अपनी लेखनी को विराम दूंगा! आपकी सब बातों में दम है, इसलिये आपका मान रखते हुए कहूंगा!
” सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तान हमारा,रहने को घर नहीं सारा जहां हमारा”. और
“हिन्दोस्तान हमारा है,प्राणों से भी प्यारा है ,इसकी रक्षा कौन करे और सेंत-मेंत मे कौन मरे?”
फिर भी हमारा देश है, हमारी भाषा है, जय भारत!
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