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कभी कभी फैस बुक पर अच्छी-अच्छी बातें आती है , जो दिल में घर कर जाती हैं! मैं मोहित दुलानी जी का आभारी हूँ की उन्होंने एक सीख दे कर निहाल कर दिया,उन्होंने लिखा है की- ” नाखून बढ जाने से नाखूनों को काटा जाता है, न की उँगलियों को ,रिश्तों में दरार आ जाए तो उन दरारों को मिटाना चाहिए न की रिश्तों को ” उन्होंने इन दरारों को मिटाने का तरीका नहीं बताया! मैंने अपनी पोस्ट में यही बात लिखी है जिसका शीर्षक है- ‘कठिन निर्णय ” सही है यह बात पर हमारा अहम् ही हमें करने नहीं देता यह सब! यहाँ दो बाते कहना चाहूँगा पहली यह की रहीम का दोहा याद करें -” रहिमन धागा प्रेम का,मत,तोड़ो चटकाय, टूटे से फिर ना जुड़े,जुड़े गाँठ पढ़ जाय ” एक तो रिश्तों को तोड़ने फिर जोड़ने से, वह बात तो आती ही नहीं है ,तो कोशीश यह हो की ये रिशते टूटें ही नहीं! पर ऐसा हमेशा नहीं हो सकता! दूसरी बात यह की कहावत है की “कोई रूठे अगर तुमसे तो उसे फ़ौरन ही माना लो क्योंकि जीद की जंग में अक्सर दूरीयां जीत जाती हैं”, मतलब की रूठने के बाद यदि ज्यादा समय मनाने तक लग गया तो वह बात नहीं आ सकती है! अब आज कल तो ज़माना यह है, की मनाने की पहल कौन करे? यही बात आड़े आती है सुलह करने में, जो पहल करे उसे कमजोर कहा जाता है और अगला पक्ष यही गाता फिरेगा की वह झुक गया,बात यहीं तक नही ख़त्म होती, फिर सदैव ही पहल करने वाले को अगला पक्क्ष दबाता रहेगा,यही है अड़चन इस धागे को न जोड़ पाने की! तो आज कल कोई किसी से दबकर नहीं रहना चाहता,ईसलिए कहा जाता है की सड़ी उंगली को काट देना ही सही है! क्या आप अपना सम्मान खोकर सुलह करने को आगे आयेंगे क्या?फिर नयी जनरेशन के लोग रिश्तों को समझते ही कहाँ हैं,साला अपने जीजाजी को आदर नहीं देता,सास ससुर के रहने तक तो ठीक है ऊनके बाद तो वह बात कहाँ रहती है? इन नाजुक से नाजुक रिश्तों को क्या दामाद बनाए रखने के लिए झुकता ही रहेगा? दामाद यह कैसे भूल सकता है की ईसी परिवार में उसका पहल्ले क्या सम्मान था! और हमें यह नहीं भूलना चाहीये की कभी-कभी तो रिशते जुड़ जाने के बाद पहल्ले से भी और मजबूत हो जाते हैं! तब इसका और ध्यान रखा जाता है की फिर वैसी नौबत ना आये! इस मामले में दोनों को बहुत ही समझदारी से काम लेना होगा! हमें बहुत ही सावधानी से काम लेना होगा इस मामले में , क्योंक्की रिशते बहुत नाजुक होते हैं और बहुत ही महत्व के होते हैं इन्हें यूं ही नहीं तोड़ने देना होगा!
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