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“जागरण ब्लागर्स मंच ” के लिए!

सपाटबयानी
सपाटबयानी
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ब्लागर्स के अलावा जागरण के पाठक हर पाठक व लेखक को जागरण के बढते प्रसार और प्रचार की जानकारी है,ही! इधर इस दिशा में ब्लॉग की सुविधाओं के कारण इसका महत्व और भी बढ़ गया है! इसमे कभी-कभी अनेक कठिनाईयां आने पर जागरण ने इसके निदान की भी व्यवस्था कर रखी है, पर अब इस व्यवस्था में दोष यह आ गया है की जागरण इसका निदान नहीं कर पा रहा है,और कभी तो हम लोग लिख-लिख कर हार जाते हैं ,फिर भी अब इस व्यवस्था को अव्यवस्था नाम देना क्या गलत होगा? मैंने लिखा है की इसे बंद ही कर दें ताकि हम ‘ब्लोगर्स’ इसकी राह तो न देखें! आप लोग भी यदि ऐसी कोई कठिनाई महसूस कर रहें हैं तो आप भी जागरण को लिख सकते है,लेकिन शालीनता से!
२-ब्लोगर्स बहुत ही गंभीर हैं जो सब अपनी-अपनी रूचि के अनुसार अपने विचार देते हैं,इनमे सर्वश्री और सुश्री-अनुराग,विक्रम जीत सिंह ,निशाजी,शिखाजी कौशिक,आरती शर्मा,अनिल कुमार पंडित समीर खान,शालिनी कौशीक जी,भानु प्रकाश शर्मा के अलावा वे जिनका नाम यहाँ भूल गया हूँ,का मैं आभारी हूँ , जो अपना बहुमूल्य समय दे कर अपने विचारों से हमें अवगत कराते हैं! मैं अल्पमत होने के कारण,और माफी मांगते हुए , महसूस करने लगा हूँ की कई लोग या अधिकाँश इन ब्लोग्स पर मात्र औपचारिकतावश ही दो शब्द लिख कर खुश कर देते हैं और वे चाहते है की हम भी उनके बदले में ऐसी ही राय लिख कर कमेंट्स की संख्या में इजाफा कर दें! पर यह ठीक नहीं लगता?,आप भरपूर ही आलोचना कर सकते हैं, उससे हम अपनी लेखनी को और ठीक कर,आप से सीख सकेंगे! हाँ इसमे यह जरूरी हो जाता है की आप पूरा का पूरा ब्लॉग पढ़ें !
३-एक कहानी यहाँ अप्रासंगिक नहीं होगी-एक बार एक ऊंट की शादी थी , उसने जंगल के अन्य जानवरों के साथ अपने घनीष्ठ मित्र गधे को विशेष रूप से बुलाया ,और हिदायत दी की तुम मेरी प्रशंसा में गीत जरूर गाना! ठीक कह कर , प्रोग्राम पर जब सब जानवर आ गए तो गधे ने अपनी बेसुरी आवाज में धेंचूं धेंचूं कर गाया, की हे ऊंट तुम बहुत सुन्दर हो ( ऊंट का कोई भी अंग सीधा होता ही नहीं है ) बदले में ऊँठ ने भी कहा मेरे दोस्त तुम बहूत अछा गाते हो ( गधे की सुरीली आवाज से तो हम परिचित ही हैं )!
४- आपसे निवेदन है की इसे किसी प्रकार से भी अन्यथा न लें, वरना मेरा आपसे जुड़ने का प्रयास यूं ही बेकार साबित हगा!यह पंचतंत्र की कथा है, जिसे आप बच्चों को सूना सकते हैं ! नमन के साथ पुन: माफी कर अंतिम निवेदन है- “तू जननी में बालक तोरा, काहे न बक्सहीं यह अवगुण मोरा ” आपसे सीखने की राह में आपका अपना ही !

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