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अमेरिकन्स की नक़ल करते भारतीय!

सपाटबयानी
सपाटबयानी
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मै अमेरीका में रह कर ,एक अरसे से देख रहा हूँ अमेरीका के भारतीयों को, जो यहाँ तमाम नौकरियों मै बहुत पैसा पा कर खुश है! और तो और परिवार के साथ यहीं के होकर बन जाने को मानसिक रूप से तैयार भी हैं! यह कोई गलत नहीं है! पर यहाँ रहकर आँख बंद कर आप इन अमेरिकन्स की नक़ल कर रहना चाहते हैं ,वह भी ऐसी नक़ल ,जो आपको ‘सूट’ न करती हो?, अजीब लगता है! भारत से आने के पहले मेरे मन मे अमेरिकन्स की जो इमेज थी, वह यहाँ आकर देखने से अलग लगी! सोचता था, की ये लोग ‘वेल अप टू डेट’ होते होंगे ‘वेल द्रेस्सेद’ होते होंगे आदि! पर यह बात नहीं है यहाँ! यहाँ ये लोग जूते,चप्पल पहनने मे ,नेकर नुमा हाफ पैं (शोर्ट्स,बर्नुडा ) और टी शर्ट या कमीज पहनने मे साइज का बिलकुल भी ध्यान नहीं रखते,जब की हमारे यहाँ ऐसे ढीले- ढाले कपडे पहन कर कोई भी कहेगा, की क्या अपने बड़े के पहन आये हो,आपके मतलब का साइज नहीं था क्या या सस्ता मिला तो उठाकर ले आये हो? हम भारतीय फिटिंग का बहुत ही ज्यादा ध्यान रखते हैं जो अछा भी लगता है, हो सकता है यहाँ यही कल्चर हो! पर मैं नहीं मान सकता इस बात को! बड़ा ही अजीब लगता है इन्हें देखकर इस प्रकार के कपड़ों मे? लड़कियों मे यह बात कम ही पायी गयी है!
यहाँ तो आप के कारण उनके फैशन को मानकर चल सकते है पर इनकी नक़ल करते भारतीय भी यही शैली अपनाते है तो लगता है की जैसे ‘जोकर’ हों, ये भारतीय इन कपड़ों में? मसलन इनकी तरह नेकर नुमा हाफ पैंट (शोर्ट्स,बरमुडा ) को जब पहनते हैं तो उनकी काली-काली टाँगे पर घने बाल देखकर घ्रणा होती है!(विशेषकर दक्षिण भारतीयों की) ये भारतीय यह नहीं सोचते की हमारी बदसूरत और घने बालों वाली टांगे तो फुल पैंट में ही ढकी रहें तो ही अछा लगेगा? बेकार हम क्यों अपनी बदसूरती को दर्शाना चाहते हैं? पर इन अमेरिकन्स की नक़ल में हम भारतीयों की सोच कुण्ड जो हो जाती है? हाँ, भारत की महिलायें ‘बीचस’ पर अमेरिकन्स लड़कीयों और महिलाओं की तरह मात्र दो ‘अंडर गारमेंट्स’ में नहाने की नक़ल नहीं करती, पर वक्ष दर्शिका ब्लाउस को जरूर पहने के शौक को पालती हैं!
इसी तरह ही खाने पीने की बातें भी अलग हैं जो हमारी कलचर में गंवारू लगती है! ये लोग चलते हुए खाते है, चलते हुए पानी या अन्य पेय पीते ,खाते- चलते हैं इसके अलावा रेस्तौरेंट्स में या चलते हुए हाथ में लेते हुए खाते देखे जा सकते हैं जो हम नहीं करते है ,अरे भाई हाथ से खाते हुए या कागजों मे लपेटे हुए खाते देखे जा सकते हैं! हाँ कुछ चीजे इस तरह खाई जाती हैं ,पर सभी नहीं,इन्हें देखकर भारतीय भी इसी तरह कर के अपने को अमेरिकन्स कहलवाने में ही कुशल समझते हैं! उन्हें यह बखूबी मालूम है की भारत में इस प्रकार करने से हम बेवक़ूफ़ ही समझे जायेंगे? पर नक़ल का शौक कहाँ ले जायेंगे? सो करते हैं!
अब आईये आख़िरी नक़ल पर, हमारे देश के गाँवों में (आज तक भी ) बच्चों को कन्धों पर ( घोड़े पर बैठने की शैली में ) या कमर पर बिठाने का आम रिवाज है पर पड़े लिखे लोग अब इसे गवारु शैली मानकर ,ऐसा नहीं करते ! पर अमेरीका में इसे करना फैशन माना जाता है, जब की यहाँ और तमाम साधन भी हैं बच्चों को ले जाने के! इसी की देखा- देखी में भारतीय भी ऐसा करके अपने को अमेरीकन कहलवाने के मोह से दूर नहीं रख सकते हैं! जो की बहुत ही अटपटा लगता है!
यह भी ध्यान रखना चाहीये की हर आदमी, औरत को हर फैशन नहीं भाता ! आपकी शक्ल और सूरत,शरीर की रचना पर फैशन का जचना और न जचना निर्भर करता है! वरना हंस की चाल की नक़ल में कहीं कौआ अपनी ही चाल न भूल जाए ,इसका भारतीयों को बहुत ही ध्यान रखना होगा!

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