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इल्म तो खजाना है,बेटे!

सपाटबयानी
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हमारे पूज्य पिता श्री कहा करते थे की ‘इल्म’ तो ऐसा खजाना है जिसे न तो कोई लूट सकता है, नहीं चोरी कर सकता है ,मै अपने बच्चों को, जितना पदना चाहें, पेट काटकर भी ऊँची से ऊँची शिक्षा दूंगा! वे कहा करते थे की इल्म तो खजाना है, जिसकी कोई गहराई नहीं नाप सकता,उसे कोई चुरा नहीं सकता,जितनी डुबकी लगाते जाओगे उतना ही उसमे निखार आता जाएगा! जितना मान्जोगे उतनी चमक आती जायेगी!
आज विचार आया तो यह सब सही लगता है,हमारे पिताश्री आज नहीं हैं, पर उनकी एक- एक बात सही लगती है! वे न तो पदे- लिखे थे फिर इतनी गहरी बातें कैसे कह जाते थे? तब हमने नहीं समझी थी, आज सोचता हूँ क्या न सही कह गए थे? आज मैं यह विश्वास के साथ उनके ऋण को मानते हुए स्वीकार करता हूँ! अध्यापक बन कर अपने छात्रों से कहता हूँ की ज्ञान खजाना है! इसके- आने के जितने दरवाजे हैं उसके जाने के उससे भी अधिक हैं, जाने के दरवाजे से मतलब ज्ञान के जाने के नहीं, अपितु उस ज्ञान को बांटने के! क्योंकि ज्ञान जितना बांटोगे उतना ही बदता जाएगा,इसलिए मैं टीचर बना.अपनी कक्षा मे जब- जब लड़के सवाल पूंछते हैं ,उतना ही हमारी पकड़ और मजबूत होती जातीथी, उस विषय पर! जवाब की खोज मे फिर हम अध्ययन को प्रेरित होते हैं ,इस तरह हम लड़कों से भी सीखते हैं! और हमारा ज्ञान भण्डार बदता ही जाता है! कोई अगर यह कहे की भाई इस विषय पर फलां टीचर से पूछ सकते हो वही सही बताएँगे तो क्या न खुशी होती है यह सुनकर! इसके विपरीत यदि आपके पास धन का खाजाना हो तो आपकी रातों की नींद खराब रहेगी, उसके आने के दवाजे कम होते है ,जाने के कई! तो हमेशा ही जाने के भय में परेशान ही रहते हैं! इस पर कुछ लिखना नहीं चाहता हूँ ,सब जानते हैं! फिर आप समाज मे धन के दम पर भले ही पोपुलर हो जाएँ पर आपको कुछ बोलने को कहा जाए तो बगले ही झाँकनी पड़ेगी! उस वक्त आपको अपना बौनापन कितना न हीन भावना के दर्शन करवाता होगा? यह कहने की जरूरत है ही नहीं! “लक्षी की सवारी तो उल्लू पर होती है” यह भले ही आज के संधर्भ मे गलत सिद्ध हो रहा हो, फिर भी विवेक,ज्ञान और इल्म का तो महत्व रहेगा ही जब तक यह धरा है! टीचर बनने के बाद पिताश्री की बात अक्षरह्तः सही लगने के बाद बहुत प्रयास किया की मेरे बेटे जो आज ‘डाक्टर’ और ‘कम्प्युटर इंजीनीयर’ हैं ,उन्हें उन्ही की फील्ड में टीचर बनाने के प्रयास में सफल नहीं हो सका? यह गम रहेगा, आजीवन तक! उन्हें पदाने के काम में कोई भी रुची नहीं थी,कारण की उन्हें क्या पता की ‘ज्ञान- दान’ में कितनी न तसल्ली होती है, कितना न सुकून मिलता है. इस विषय पर लिख कर स्वर्गीय पिताश्री के कथन “इल्म तो खजाना है “को याद कर श्रन्धाजली अर्पित करता हूँ!

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