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हमारा देश आजकल ऐसी स्थिति से गुजर रहा है ,जो विशव के अन्य देशों के सामने बहुत ही खराब मिसाल रख रहा है! पी.एम् की किरकिरी, उनके सामने कमीज उतार कर नारेबाजी करना,मुख्या मंत्री को चप्पलें दिखाना,फेस बुक पर हर नेताओं की चाहे जैसी तसवीर बना कर उन्हें नंगा करना,राष्ट्रीय प्रतीकों से तथाकथित खिलवाड़ कर अपनी वेदना व्यक्त करना आदि! यह गलत होते हुए भी हम किसी असीम त्रिवेदी,अध्यापकों,या जनता को दोष नहीं दे सकते? क्यों नहीं इनके कारणों को खंगाला जाता? क्या पहले भी ऐसा होता रहा है? ‘नहीं’ में जवाब पा कर इस पर विचार करना ही समीचीन होगा!
नेताओं द्वारा जनहित में काम न करना,उनके विकास का धन डकार जाना ,बड़े बड़े घपले करना,उनके पकडे जाने पर कुछ न होना,पी. एम्.का कठपुतली बन कर काम करना ,जैसे और कई कदम हैं जो जनता को मालूम होते हुए भी वह कुछ न कर पाने में विवश हो जाती है,यह जनता की विवशता है,वेदना है,जो आक्रोश के रूप में इस तरह व्यक्त की जा रही है! हम सरकार के दफ्तरों में जाकर भवन- कर दे आते हैं ,हम सरकार के दफ्तरों में जाकर बिजाली के पैसे दे आते हैं,फिर भी बिजली नहीं मिलती,नलों में पानी नहीं मिलता ,सीवरों का गंदा सडकों पर चलता रहता है.शिकायतों का प्रावधान है पर करने से कोई सुनवाई नहीं होती तो इस विवशता के बदले क्या किसी अधिकारी का कालर पकड़ लें? यदि ऐसा कर भी ले तो सरकारी काम में बाधा पहुंचाने के आरोप में धर लिए जाते हैं,अब केस लड़ो तो और वकीलों, अदालतों का खर्चा गले में! समय खराब होगा वह अलग? अधिकारी तो सरकारी धन पर केस लड़ेंगे, पर हमारा तो जेब से ही जाएगा! यह तो वही हुआ की “गये थे नमाज पड़ने रोजे गले लग गए ” क्यों अध्यापकों को नियमित नहीं किया जाता? ,क्यों उन्हें समय पर वेतन नहीं दिया जाता? यदि उनके साथ यह अन्याय हो तो क्या करें वे? आज तो वे वेदना,विवशता,आक्रोश के प्रदर्शन में केवल चप्पलें उठा रहें है यदि इस पर भी कुछ नहीं हुआ तो वो चप्पलें मार भी देंगे.तब क्या रहेगी इन जन प्रितिनिधियों की इज्जत? ज़रा सोचें ये नेता लोग! असीम त्रिवेदी या कमीज उतार कर नारेबाजी करने वाले की कोई सुनवाई नहीं हुई होगी, तभी तो उनका यह कदम विश्व के सामने आया है! अब शायद ही कोई सुधार हो,अब समय आ गया है की जनता ही इन नेताओं को पकड़- पकड़ कर मारेगी! तब समय बीत चुका होगा ! कोई शक नहीं की नेताओं को ऐसे मारे, जैसे ईरान के राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन को बिल से निकाल कर मारा गया था!
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