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एफ. डी. आई.” विषय पर मैंने अपनी तीन पोस्ट प्रेषित की ,कई लोगों ने सहमति और सुझाव तथा असहमति दर्शाई है उन्होंने अपने- अपने विचार दिए हैं जिनका उन्हें पूरा- पूरा अधिकार है और इससे हमारी सोच को और विस्तार देने का भी अवसर मिलता है! तीन पोस्ट पर लगभग दस लोगों में से मात्र एक विद्वान् ने अपने अच्छे और अकाट्य विचार देकर मुझे फिर इसी विषय पर फिर से लिखने को प्रेरित किया है , मैं उनका आभारी हूँ! टीकाकारों में सर्वश्री हिमान्शु,मनोरंजन ठाकुर ,भानु प्रकाश,जे एल सिंह,अनुराग,योगी,प्रवीण दीक्षित सत्यशील और सुश्री निशा जी के नाम हैं! आज अमेरीका में इस वालमार्ट का तमाम विरोध हो रहा है क्यों?, उस पर चर्चा करना से लेख के विस्तार का भय हो रहा है! अमेरीका में वालमार्ट संस्क्रिरती ही है इसलिए यहाँ तमाम ऐसे स्टोर्स हैं जो चल रहे हैं क्योंकी यहाँ और कोई उपाय है ही नहीं! इनमे वालमार्ट,स्ताप्लस ,खोल्स,डालर ट्री,वालग्रीन, सी.वी.एस. फार्मेसी,क्रोगर,ओल्ड नेवी,मैसीज ,सीअर्स,कासको,न जाने और कितने स्टोर्स हैं और इनके कई कई स्टोर्स एक ही शहर में फैले हुए हैं और एक ख़ास बात की एक ही कम्पनी के अन्य स्टोर्स पर उसी चीज के दाम भी अलग -अलग हैं,लेकिन दूरी के कारण या अज्ञानतावश खरीदार लेने से परहेज नहीं करते! और ठगे भी जाते हैं!
अब हम यह कहना चाहेंगे की सरकार ने जब तय कर ही लिया है की वालमार्ट भारत में खुलेंगे तो उसे कोई नहीं रोक पायेगा भले ही विरोध में ममता जी सपोर्ट वापिस ले लिया है,या और विरोधी हो हल्ला करते रहें! सरकार के पास अपने फायदे के लिए मुलायम जैसी कई पार्टियां आ गयी है ,तो सरकार को परवाह है नहीं गिरने की! सरकार के सिवाय अन्य दलों के मन में इसे आने देने और न आने देने की बात तो हम सामान्य जन समझ नहीं सकते पर जहां तक खुदरा व्यापारियों के नुकसान की बात है ,उनके बंद हो जाने की आशंका है ,वह निर्मूल है!
ऊपर हमने इन स्टोर्स के नाम गिनाये हैं इनको देखकर आप हैरान हो जायेंगे,इनके स्टाफ,खर्चे, रख रखाव, पार्किंग की जगहों ( जो की यहाँ संभव होगी ही नहीं ) के खर्चों को क्या भारत में झेलना संभव है?,यदि झेल भी लें तो सामान मांगा बेचेंगे जब की हम भारतीयों को एक रुपये के बदले ८० पैसे में कोई चीज मिलेगी तो वहीं जायेगे और आगे से उस दूकान पर जायेंगे ही नहीं! फिर ये लोग भारतीयों को ही जॉब देंगे , न की अमेरीका से स्टाफ लायेंगे, भारतीयों द्वारा काम करने और नेतागिरी के कारण,उनके चरित्र के कारण जो चोरी होगी उसे रोक पाना और भारतीयों से पार पाना इनके बस की बात है ही नहीं सो ये टिक ही नहीं पायेंगे? श्री सत्यशील जी ने सवाल उठाया है की नियम है की बड़ी मछली, छोटी मछली को खा जाती है,सही होने पर भी क्या हमारे देश में बड़े और बड़े और भी बड़े व्यापारी नहीं हैं जब है, तो यहाँ भी तो वही सिद्धांत काम करता है फिर यहाँ जब चल सकता है तो तब क्यों नहीं चलेगा?
हम भारतीयों की तो आदत है ‘जलने’ की! इसलिए यदि किसी कपडे,चश्मे,जूते, चाट,कचोरी वाले की दूकान खूब चलने लगती है तो कोई और भाई इसके पास आकर अपनी दूकान खोल लेता है, और तो और वहां एक लड़का खडा करके पहले वाली दूकान के ग्राहकों को बुलाने से नहीं चूकता! तब क्या पहले वाला भाग जाता है या दकान बंद तो कर नहीं जाता ? बाद वाला दुकानदार कितना घाटा सहकर ,कम दाम पर सामान देकर चलाएगा अपनी दूकान को?
हमें नहीं भूलना चाहीये की अमेरीका और भारत की परस्थितियाँ अलग -अलग है ,यहाँ के खरीदारों की आर्थिक स्थितियां भी अलग -अलग हैं शौक पालने की ताकत भी अलग- अलग हैं, भारत में जहां बड़ी-बड़ी दुकाने है वे चल रही है तो छोटी छोटी दुकाने भी चल रही हैं जहां कम पैसे वाले रोज कुंवा खोद कर रोज पानी पीने वाले बहुत हैं, ऐसे लोग है जो एक समय के खाने के आटे,चावा,दाल,घी नमक मसाले लेने को विवश होते हैं , उन्हें ये वालमार्ट वाले दो-दो पैसे का सामान दे पायेंगे क्या? सो हमारे देश में इन्हें कोई भी बंद नहीं करवा सकेगा! और न ये बन्द होंगे ! तो अब साफ़ हो गया होगा की भारत में छोटी मछलियाँ भी रहेंगी और बड़ी भी! कारन की दोनों मछलियों के तालाब अलग-अलग जो हैं! पूरे विषय का लब्बो लब्बाब यह है की परिणाम अभी भी भविष्य के गर्भ में हैं, जब जनता का वीरोध भी काम नहीं कर सक रहा है,पार्टियां भी कुछ नहीं कर सक रही हैं तो फिर मान जाईये की–” होई वही जो मनमोहन रच राखा “!
अंत में साफ कर दूं न तो में सरकार के पक्ष में हूँ नहीं किसी के बहकावे में, अपनी सीमित बुद्धि के कारण जो समझा है इस निवेश को उचित मानते हुए अपना पक्ष प्रस्तुत किया है!
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