- 182 Posts
- 458 Comments
कुछ दिन पहले प्रकाश झा की फिलम आयी थी-‘आरक्षण’ बहुत विरोध हुआ था, खैर किसी प्रकार हील हुज्जत के बाद सब निपट गया और फिल्म रिलीज हो कर सामने आयी! ऐसा कुछ नहीं था या था ,इस पर विचार न करके, हम यह भी कह सकते है की मात्र यह प्रचार का तरीका भी हो सकता है! कारण की अब और एक फिल्म दिखाई गयी थी- ‘बनारस-ए मिस्टिक लव स्टोरी’! इसमे भी ऐसे शब्द और द्रश्य हैं, जो आरक्षित वर्ग द्वारा आपत्ति किये जाने को ( बहाना बना कर ) काफीहैं,जैसे-एक चरित्र ‘ सोऽहं’ को ‘कम जात ‘ कहना आदि! पर यहाँ कोई आपत्ति क्यों नहीं की गयी? कहने का मतलब यह है की समाज की स्थिति को दिखाने के लिए यह जरूरी हो जाता है! इसमे किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाने की बात है ही नहीं!
भारत सरकार की एक महत्वपूरण और एकमात्र संस्था है -केंद्रीय हिन्दी संस्थान ,जो आगरा में मुख्यालय के साथ पूरे भारत के तमाम अहिन्दी प्रदेशों में काम कर रही है, यह संस्था हर अहिन्दी परदेशों के अहिन्दी भाषी हिन्दी अध्यापकों को हिन्दी का प्रिशिक्षण देती है ! यहाँ सभी अध्यापकों को अपनी-अपनी जिज्ञासाओं के समाधान का आमने-सामने रूबरू ढंग से समाधान किया जाता है! इसमे उन्हें हिन्दी की तमाम जानकारीयों के साथ शब्दों केविलोम,समानार्थी,पर्यायवाची,अनेकार्थी आदि को भी समझाया और सिखाया जाता है! उन्हें बताया जाता है की धोबी का स्त्रीलिंग-धोबिन,दरजी का-दरजिन ,और मास्टर का= मासतराइन/मास्टरनी होता है और भंगी का भंगिन ! इस प्रकार की जानकारी के अभाव में क्या हिन्दी शिक्षण पूर्ण माना जा सकता है? आज हम क्या इसे यदि अन्यथा समझ कर पढाना छोड़ दें तो ?,पुराना साहित्य जो हमारी धरोहर है प्रेमचंद के पूरे के पूरे साहित्य में यह शब्दावली है,समस्त हिन्दी कोशों में ये शब्द भरे पड़ें हैं,तो इस बहुमूल्य साहित्य को क्या जला दीया जाये? सुश्री मायावती इन शब्दों का खूब प्रयोग करते देखी जाती हैं और तो और पकज कपूर द्वारा दिखाया जानेवाला सीरीयल ‘आफिस-आफिस’ जब इन शब्दों से परहेज नहीं करता तो क्यों है उन आरक्षित वर्ग वालों को इन शब्दों के प्रयोग से परहेज? मतलब की “ये करें तो रासलीला और हम करें तो करेक्टर ढीला”
आज हम पुराणी मीट्रिक प्रणाली को छोड़ा चुकें हैं फिर भी हमें रुपये में ‘सोलहे आने’ की,किल्लोमीटर से पहले ‘मील’ शब्द के प्रचलन की जानकारी,किलो से पहले ‘सेर और पाँव,छटांक की जानकारी देनी होगी वर्ना हम कवी घनानद की यह पंक्ति “मन लेहु पे देहु छटांक नहीं” में प्रयुक्त “छटांक” और “मन” का अर्थ कैसे समझा पाएंगे? आरक्षित वर्ग के लोग हर जगह फ़ायदा तो चाहते है पर अपने को, अब वे अपना वर्ग बताने को भी हिचकते है, अरे भाई जब तक बताओगे नहीं तो लोग जानेगे कैसे की आपके संग कया न्याय /अन्याय हुआ था? आप अपनी सरनेम में तो बाल्मीकी,मौर्य,आर्या,सूर्या और ऋषियों के नाम लिखकर उनकी संतान बताते हो, पर ‘बालमीकि’ सरनेम से पुकारे जाने पर आपत्ति करते हो? जब की सरकारी रिकार्ड में आपने खुद ही लिखा है! यदि ऐसा है तो आप नाम में इस शब्द को क्यूं जोड़ते हो?
आज हिन्दी शिक्षण में यदि इस प्रकार के बंधन लगाए जायेंगे तो हिन्दी जिसे ‘राष्ट्र – भाषा’ कहा जाता है, क्या सही रूप में सिखाई जा सकती है? अब तो डर लगने लगा है की हमारी भावना गलत न भी हो तो ये आरक्षित वर्ग वाले यूं ही न फंसा दे ,जो की दोनों वर्ग वालों की दूरियों को और बढ़ा देंगी!
अब अंत में मेरा निवेदन है की सभी प्रयोग में आने वाले और न आने वाले सभी नए और पुराने शब्दों का शिक्षण जरूरी है विशेषकर अहिन्दी भाषियों और विदेशी भाषियों के लिए ! जिन्हें हिन्दी को सीखने की ललक है,चाह है, इसके बिना हिदी शिक्षण अधूरा ही होगा जिसे कोई नहीं चाहेगा?
Read Comments