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हम यह सुनते-सुनते थक से गए हैं की हमारा देश गरीब है, हम गरीब हैं, हमारी जनता का इतना प्रतिशत बिना दो समय का भोजन किये सो जाता है ,आदि-आदि! हमारा देश पहले सोने की चिड़िया था,अब उसे नेताओं ने लूट लिया है, पहले अंग्रेजों ने लूटा था! पर यदि यह बात सही भी है तो किया क्या जाए? कलमाडी और ए राजा अब वापिस भी आ गए तो क्या करें इन बेईमानों को? हम क़ब तक रोते रहेंगे? मेरे विचार से आप आंकड़ों पर न जा कर व्यवहारिक रूप से देखें की क्या यह सच है?
आज भी हमारा देश वही सोने की चिड़िया है,हमारे देश का जो काला धन है ,विदेशों में है वह न भी आ सके तो क्या यहाँ के मंदिरों में जो लाखो टन सोना है वह क्या इसे उसी सोने की चिड़िया का दर्जा दिलाने के लिए काफी नहीं है? तो आज से आप न कहें की अब हमारा देश लुटा गया, हमारा देश अब सोने की चिड़िया नहीं रहा ! मनोविज्ञान का नियम है की आप रोज किसी को यदि मूर्ख-मूर्ख कहते रहें तो वह मूर्ख ही हो जाएगा! तो आप अपने देश को यही कहें, की यह अब भी सोने की चिड़िया ही है,जो की किसी प्रकार से गलत नहीं होगा! जो की सही में है भी! यहाँ किसी चीज की कमी है ही नहीं,कमी है तो केवल चरित्र की!
आज देश ने तरक्की की है क्या वह आप लोग देखते नहीं हैं? भले ही महगाई बढ़ी है पर हर आदमी की आमदनी भी तो बड़ी है, सरकारी नौकरियों में वेतन के रुपयों की वर्षा नहीं हो रही है? क्या उन्होंने अपने रीश्वत की रकम के चार्जिस नहीं बढ़ा दिए है? साधारण से साधारण बाबू के घर में नगदी निकलना क्या बताता है? रही उन लोगों की बात जो सरकारी नौकरियों में नहीं है, क्या उनहोंने अपने-अपने काम के दाम नहीं बढ़ा दिए है? जो मजदूर कभी १००/- रुपये लेता था अब वही,उसी काम के ५००/- नहीं ले रहा है? आज हर छोटे से छोटा आदमी ५००/- का नोट रखने की सामर्थ्य नहीं रखता ?,कैसे गरीब देश के गरीबों के लिए यह संभव हो सकता है? आज आप किसी भिखारी को खाना खिलाने को आगे आयें तो वह खाना नहीं पैसे मांगता है,उसे भूख रोटी की नहीं पैसे की है! आये दिन समाचारों में पढ़ने को मिलता है की एक भिखारी की मौत हुयी और उसके पास से तमाम रुपये निकले! क्या हमारा देश गरीब है? क्या गरीब देश के भिखारी तक जब मालदार हों तो वह देश और उस देश के लोग गरीब कैसे माने जा सकते है?
हर आदमी स्कूटर से नहीं चल रहा है? हर आदमी एक अब दो कारें नहीं रख रहा ? हर आदमी मोबाइल फोन नहीं रख रहा है? क्या हर आदमी के पास जहां एक कमरे वाला मकान था , अब उसके पास ३ बी एच के का फ्लैट तो है ही , पर उसने एक,दो और भी ऐसे फ्लैट बुक नहीं करा रखे है? हर आदमी महंगे वाटर पार्कों में कैसे जा पा रहा है यदि वह गरीब है तो? कैसे महंगे से महंगे स्कूलों की फीस दे पा रहा है? जहां ऑटो वाले ५-६ किलो मीटर के लिए पहले ४०/- लिया करते थे अब ७०/- लेते है और देने वाली सवारियां देती हैं ! मजबूरी में ही सही, ये फिर अपनी आमदनी बढ़ा कर उसकी भरपाई करती हैं ! इसी अपनी आमदनी के बढाने के प्रयास में उसे जो दर्द होता है, वही उसकी परेशानी का सबब है!
विकास के नाम पर एक्सप्रेस वे पर तो चल कर आगरा से दिल्ली जल्दी भी पहुँचना चाहते है ,सड़कें भी अच्छी चाहते है,पर टोल के नाम पर पैसा नहीं देना चाहते ? मतलब हर आदमी सुविधाएं तो चाहता है, दूसरों को लूटना तो चाहता है पर आप लुटता है तो हो हल्ला करता है!
पहले ईंट,सीमेंट,रेत और अन्य सामान कितने में मिलता था और अब कितने में मिल रहा है? पहले कितने मकान बनते थे, अब कितने मकान बन रहे है? मतलब महंगाई के कारण यदि यह सब पहले से ज्यादा हो रहा है तो कहाँ है गरीबी और कहाँ है गरीब? हम विकास भी चाहते हैं और विकसित भी कहलाना चाहते हैं फिर थोड़ी यह कठिनाई तो सहनी ही पड़ेगी,जिसके लिए हम हाय- तोबा क्यों करते हैं? जितने भी विकसित देश हैं वे सभी भारत से महंगे और महंगाई वाले हैं! हाँ ,यहाँ थोड़ा बहुत यदि चरित्र सुधर जाए तो हमें राहत जरूर मिल सकती है वह शायद संभव है ही नही,क्योंकी हम ने तो न सुधरने की कसम जो खाई है!
हम विकास के दम पर झोपडीयों को हटाकर उन लोगों को सस्ते या उनकी सहूलियतों के अनुसार घर बनवा कर देते है ,पर ये लोग इन घरों को बेचकर फिर अन्यत्र झोपडी बसा कर रहते है, क्यों की इनका तो घरों में रहने से दम जो घुटता है? ये लोग खुले में रहना, खाना और हगना जो पसंद करते है? घर किसे कहते है इन्हें न तो जानना है न ही जानने की जरूरत ही है इन्हें! अब बताईये ऐसे लोगों को देख कर कोई भी आसानी से कह सकता है की देश कंगाल है,,लोगों को रहने खाने को है ही नहीं! इसलिए देश और देश के लोग गरीब है! यदि यही हाल रहा तो हम कभी भी विकसित देश न तो हो सकते है और नहीं विकसित देशों की कतार में खड़े होने के लायक ही?
डा.पीताम्बर ठाकवानी, अमेरीका
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