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अटल जी और जायसवाल ( ‘जी’ नहीं लगाऊँगा )

सपाटबयानी
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जायसवाल ,तुम्हारे नाम के साथ जन साधारण ‘जी’ नहीं लगाए तो भी तुम्हारा मुंह काला ही समझो! वैसे भी कोयला मंत्री हो, मुख काला तो हो ही गया है या हो ही जाता है! मंत्रालय ही ऐसा है!
जब बाजपेयी जी विदेश मंत्री बने तो उन्होंने कहा था की मंत्री बनने में बड़े मजे तो हैं पर अपने व्यक्तिगत शौक तो छोड़ने ही पड़ते हैं ,मतलब अब मैं कही खड़े हो कर खुले में भांग नहीं पी सकता,लोग कहेंगे की भारत सरकार का मंत्री भांग पी रहा है! सो आपने अपने अग्रज अटल जी से भी नहीं सीखा यह फंडा? माना वे बी.जे.पी. के हैं पर इतनी बात तो बता ही देते !
जायसवाल, तुम्हे यदि नयी बीवियों का शौक है भी तो उसे सार्वजनिक नहीं करना था हम समझते है की तुम मंत्री लोग होते ही ऐसे हो! मद्रेना,चन्द्र मोहन उर्फ़ चाँद,गोपाल कांदा, एन.डी. तिवारी और अमरमणि त्रिपाठी धूर्तों ने यह साबित कर दिया है! सो हम सब समझने लगे हैं की मंत्री का मतलब इन व्यसनों से युक्त होना, वरना कहे का मंत्री?
‘लोहे का स्वाद तो उस घोड़े से पूछो जिसके मुंह में लगाम है’,या फिर यह कहावत तो आम है की ‘जाके पाँव न फटी बिवाई वो क्या जाने पीर पराई?’ तुम तो ‘बीवी’ का मतलब ही नहीं जानते हो? उसका सुख और मजा क्या जानोगे? तुमने जो नई बीवी का जिक्र किया था, उसका मतलब क्या था? ‘बीवी जो पहले नयी थी और समय के साथ पुरानी हो गयी है’ या फिर ‘हर बार नयी-नयी बीवी से है?’ तुम्हारे भाषण में दूसरे अर्थ से मतलब है? परन्तु मै बता दूं की पहले वाला अर्थ ज्यादा ठीक और ज्यादा मजा देने वाला है! यह भी जन लो जब बीवी एक हो और नयी से पुरानी तक होती चली जाती है तो हमारा समाज में,ससुराल में,दोस्तों में बहुत आदर होता है हम चार लोगों में बैठने के लायक होते हैं,हर बार बीवी ध्यान रखती है, पहले हमें खाना खिला कर फिर खुद खाती है,हमारे बिना वह कुछ सोचती भी नहीं है! धीरे-धीरे समय के साथ जब वह अधिक आयु को प्राप्त होती है, तब भी समाजों में हमारा वही स्थान रहता है अनुभव बढ़ने के साथ उसके कारण हमारा कद भी बढ़ता जाता है! लेकिन तुम्हारे अर्थ वाली बीवी के साथ यह बात हो नहीं सकती? अब बताओ कौन सी में सुख है? तुम्हारे अर्थ वाली बीवी आ भी गयी,मिल भी गयी तो दिन भर दोस्तों का मजमा लगा रहेगा और मनचले, बेवडे,मवाली,तपोड़ी,लम्पट मित्र लाइन मरने की ताक़ में ही रहेंगे और वो नयी बीवी तो उधर ही ध्यान देगी न की तुम्हारी बनी रहेगी? जब तुम उसमे मजा ढूँढते हो तो वह भी नयो में मजा ढूंढेगी ? पुरानी ही विश्वसनीय रह सकती है ,एक बीवी का महत्व और अनुभव तो भुक्त भोगी ही जान सकता है? रोज नयी बीवीयो वाले क्या जाने? इसलिये ऊपर ‘लोहार’ और ‘बिवाई फटने’ का उदाहरण दिया है! यह पुरानी, जिन्दगी तक साथ देगी, मरने दम तक! इसलिये कहा है की ‘एक नारी सदा ब्रहमचारी’ तो अब क्या इतना जानने के बाद भी ‘नयी नौ दिन वाली बीवी’ का ही इरादा है? पहले तौलो फिर बोलो’ वर्ना क्या मेरे जैसा मामूली आदमी भी ‘तुम’ से संबोधन करने की हिम्मत जुटा सकता था?
तुम आज यदि बाजपेयी जी से सबक लेते तो इस थू-थू से बच जाते ,सोचो केंद्रीय मंत्री हो क्या यह अच्छा लगता है की ऐसे बयान दो? ‘ अब तुम अपनी भूल का इजहार कर, टी.वी पर माफी मांग लो तो जय-जय हो सकती है!

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