आजकल विकास के कारण हर दिशा में लोग कसौटी पर कसे बिना किसी बात को मानने को तैयार ही नहीं रहते ? लगता है जैसे वे हर समय ही कसौटी साथ लेकरं चल रहे होते हैं! और तो और अब ये लोग पौणारिक कथाओं और मान्यताओं पर भी भरोसा नहीं करते! वे मानते है की पुराने लोग धर्म भीरु थे ,हर बात यूं ही मान लेते थे और कम पढ़े लिखे होने के कारण जैसे जो समझा देता था, मान लेते थे! बात में वजन होने के साथ, हम इससे असहमत नहीं हो सकते हैं! इसलिये रामायण से सम्भदित कुछ प्रकरण यहाँ उठाये जा रहे हैं ,आप विद्वान् इसका समाधान कर मार्ग दर्शन करने की अनुकम्पा करेंगे! लंकापति राजा रावण की लंका को सोने की बताया गया है,क्या मतलब है इसका ? क्या पूरी नगरी सोने की थी या भव्यता के कारण अतिश्योक्ति के रूप में दिखाया या बताया गया है? यदि यह सोने की ही थी तो हनुमान द्वारा आग कैसे लगाई जा सकी? ( हनुमान की पूंछ में लगन ना पायी आग, लंका सारी जर गयी, गए निशाचर भाग ) या तो कहें की यह सोना किसी धातु को न कहकर किसी और पदार्थ को कहा जाता होगा, क्योंकि सोना जिसे हम जानते है, उसमे आग कैसे लग सकती है? फिर इतना बड़ा नुकसान करने को क्यों हिचक नहीं हुई हनुमान जी, को? चाहे वह नुकसान रावण का ही क्यों न हुआ? सीता की अग्नि परिक्षा की बात भी कैसे सही हो सकती है? अग्नी का धर्म है जलाना, जब सीता जी उसमे से गुजर कर सही सलामात आ गयी तो क्या यह अगनी,अगनी नहीं थी, क्योंकि अगनी का धर्म जलाना होता है यदि वह जला नही सकी तो उसने अपना धर्म नहीं निभाया या वो अगनी ही नहीं रही होगी! अपनी पत्नी सीता को लेने के लिए राजा राम ने लंका पर हमला कर न जाने कितनी औरतो को ‘बेवा’ बना दिया,फिर भी वे पूजनीय कैसे बने रहे हैं, काहे के धर्म की उच्च भूमि के संररक्षक कहे जाते हैं हमारे मर्यादा पुरषोतम राम जी? हमारे वरिष्ठ ब्लोगर मित्र श्री जे. एल. सिंह जी, के अनुसार जन कल्याण के लिए यह सब करने से कूई गलत नहीं होता? तो क्या रावण की लंका के लोग “जन” नहीं थे? या यह अपनों और परायों की बात हो जाती है यदि ऐसा है तो राम और एक साधारण आदमी में क्या अंतर कर सकते है,समझ में नहीं आ रहा है! बाली को मारकर वह भी धोखे से, उनके व्यक्तिगत मामले में हस्तक्षेप क्यूं किया? क्या बाली ने उनके राज- काज में कभी दखल दिया? यह तो वही बात हो गयी की “आप मिया मगता, द्वार खडा दरवेश ” राजा दशरथ और कैकयी जी के षड़यंत्र से उन्हें जब बनवास भोगना पडा तो क्यों नहीं उन्हें दंड दिया राम जी ने? पिता के अनुचित और पक्षपात पूर्ण आदेश का पालान किया जाना क्या और कैसे उचित माना जाना चाहिए? ब्लोगेर्स की अपनी सही और तर्कपूर्ण सोच का इंतज़ार रहेगा इस अल्पज्ञ को!
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