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सम्पादकीय सोच का सच ?

सपाटबयानी
सपाटबयानी
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यह बहुत पहले से ही माना जाता रहा है कि “नेता कुछ नहीं देता,, पर हर बार है लेता ” हमारे नेता हर बार ऐसा बयान दे जाते हैं जिसके कारण उन्हें हम क्या, कोई भी अक्लमंद नहीं कह सकता चाहे अक्लबंद जरूर कहें! पर हमें तब और अफसोस होता है ज़ब ये समपादक इन नेताओं की बेतुकी बातों को अपने समाचारों की सुर्खियाँ बना कर उनका महत्व मान बढाते रहते हैं? आजकल नंबर वन कहे जाने वाले ” दैनिक जागरण ” के सम्पादक भी उनसे अलग नहीं कहे जा सकते? इसलिए उनकी सोच पर भी हम सवालिया निशाँ लगाने को विवश हैं!और
‘जागरण फोरम’ में लगातार दो विषयों पर जायसवाल जी,और पूर्व सी एम् चौटाला जी, के बारे में क्रमशः ‘नई बीवी…… ‘ और ‘खाप के विचारों………. ‘ से सम्बंधित विषय पर लिखकर सवालों के जवाब मांगे जारहे हैं, वे क्या किसी भी तरह उनकी ख्याति को बढ़ा नहीं रहे हैं? जब की नेताओं के इन बयानों पर न लिख कर सम्पादक महोदय को उन्हें ‘इगनोर’ ही करना उपयुक्त है! हम सब जानते है की ये अनपढ़ हैं और कुछ भी बोलने के आदि हैं इन्हें समय ही कहा रहता है की सोचें? सो कह देते हैं कुछ भी! ये नहीं जानते के उनके वक्तव्य के और भी अर्थ निकल सकते हैं और महिलाओं, जन सामान्य की भावनाओं को ठेस भी पहुँच सकती है ? पर हमें तो ‘सम्पादक दैनिक जागरन की सोच पर अफ़सोस होता है की वे क्यों इनकी बेहूदा बातों को वजन देतें है? अरे, इससे तो हमारे ब्लॉगर्स ही काम की और सही बातें कर गुजरते हैं ,पर सम्पादक को ये ब्लोगर्स क्या फ़ायदा दे सकते हैं ? यही लोभ वाली प्रवृति ही यहाँ काम कर जाती है! शायद लोभ होता है की इनका नाम ला कर,उन्हें पारश्रमिक दे कर उनसे अपने समाचार पत्रों के लिए लाखो और कडोरों के विज्ञापन हासिल करेंगे! यही सम्पादकीय सोच का सच है!

तो यही है सम्पादक महोदय की सोच का सच ! अंत में हम चाहेंगे की हल्केपन से दिए गए इन नेताओं की बातों को वजन न दें, और जिससे की इनकी और ख्याति बढ़ सके ! हम जानते है की आप इन्हें नंगा करने की बात कह सकते है ,पर जो पहले से ही नंगा हो उसे और क्या नंगा किया जा सकता है?

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