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“विकसित” होना ही दुखों का कारण-jagran junction forum

सपाटबयानी
सपाटबयानी
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हमारे देश से अमेरीका और अन्य कई देश वकसित है पर क्या आज भी वे लोग उतने चैन और सुकून से जी पा रहे हैं जितने हम भारतीय ? आजकल इन देशों की नक़ल में हम अंधे हो कर अपना चैन और सुकून खोते जरूर जा रहे हैं जो की समय की मांग भी कही जा सकती है! कहा यह जाता है की “कुछ पाने के लिए कुछ खोना ही पड़ता है” नव यवकों / नव युवतियों और वरिष्ठ नागरिकों के हिसाब से इस खोने और पाने का गणित अलग-अलग हो सकता है!और यही सोच दोनों पीढ़ियों के टकराव का कारण भी है जिसमे पुराने लोगों की हार होती आयी है और होती ही रहेगी! इसलिए चुप हो कर ही रहने में भलाई है!
आजकल फ़्लैटस फैशन में हमने खेती की जमीन को खो दिया है , नोटों के चक्कर में में रसायनों से खेती कर तमाम लाइलाज बीमारियाँ मोल ले ली हैं,और अपनी सोना उगलने वाली भूमि को बंजर बना दिया है,जैविक खेती का अर्थ ही भूल गए हैं, कहाँ है जल स्रोत और कहाँ है पेड़ – पौधे? कहाँ है वर्षा का वह आलम? हमारे भू मंडलों के जल स्तरों की हालत कैसी है? आप विचारें!
हम हमेशा गर्मियों में घरों के बाहर सोते थे, न गर्मी सताती थी न ही किसी पंखे या कूलर की जरूरत होती थी, कितनी भी गर्मी हो लेकिन रात को ठंडी हवाओं से जो सुकून मिलता था वह केवल महसूस किया जाता था !
सुबह पक्षियों के चहचहाने से आँखें जब खुलतीं थी क्या आनद आता था? अब कहाँ है ये आवाजे? मोबाइलों के टावरों ने सारे बेजुबान पक्षियों को न जाने कहाँ गायब कर दिया? गर्मियों में गौरैया नामक चिड़िया क्या आपके घरों में घोसला बनाने आती है,नहीं, आयेंगी भी नहीं अब! आधुनिकता और विकास ने क्या कर दिया नहीं मालूम हो रहा है हमें! हम भले ही महंगे-महंगे मोबाइल ले कर अपने को उच्च- वर्गीय होने का दावा और दिखावा करें पर जो बीमारिया मोल ले रहें हैं उनका क्या?अब हम गर्मी में सो भी नहीं पाते, रात को बंद घरों में कूलरों और ऐ सी में सोते भी है तो बिजली चले जाने पर क्या हालत होती है वह बयान करने की जरूरत नहीं है! क्या किया है हमने विकास करके? आगे हमारी जो दुर्गति होनी है उसका हमें अंदाज ही नहीं है पर अब कोई कुछ नहीं कर सकता क्योंकि हम जिस वाहन पर बैठ गए हैं उसमे ‘बैक- गीयर’ होता ही नहीं!
हम गाँवों से कस्बों में,कस्बों से नगरों में,नगरों से महानगरों के घरों में फिर महानगरों के घरों से आधुनिकता के फेर में पड़ कर ‘फ्लैट्स’ में आ गएं हैं, जहां कोई किसी को जानता ही नहीं है फिर कैसे होगी आत्मीयता?,जहां पर दुःख- सुख में कोई काम भी नहीं है आनेवाला? जब की गाँवों में एक का दुःख पूरे गाँव का ही दुःख होता था,सब लोग एक हो कर खड़े हो जाते थे, कहाँ है और अब रह गयी है यह आत्मीयता? गाँवों की चौपाल पर विचार- विनमय जैसी बात कहाँ है? न खाने की चिंता न कमाने का विचार, ना जाने सब कैसे चलता था? तभी तो ‘सुदर्शन फाकिर’ का यह गीत ‘जगजीत सिंह जी’ की आवाज में अमर हो गया–

” ये दौलत भी लेलो, ये शौहरत भी ले लो,
भले छीन लो मुझसे ये मेरी जवानी,
मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन,
वो कागज़ की किश्ती वो बारिश का पानी ”

आजकल सब को महानगरों की घुटन भरी जिदगी रास आ गयी है जहा ‘फ्लैट्स- संसकिरती’ पनपी है! हर बच्चे का अलग कमरा, अलग ‘रेस्ट रूम’ वह भी अटैचेद! कोई क्या कर रहा है, जवां बेटी क्या कर रही है, आप नहीं जान सकते अलग टी वी में क्या देख रही है आपको जानने की जरूरत नहीं है! किसके साथ कहाँ जा रही है कब आ रही है कोई मतलब है ही नहीं,क्योंकि ‘निरोध’ और ‘१८ अगेन’ जैसे साधन जो आ गएँ हैं!
अब हमारी सरकारें ‘ऍफ़ डी आई’ को अनुमत कर रही है उसे क्या नफ़ा नुकसान होगा यह तो अभी भविष्य के गर्भ में ही है , पर संकेत के रूप में यहाँ एक वाक्या सुनाता हूँ– मैं आजकल अमेरीका में हूँ , यहाँ एक बहुत बड़ी मशहूर कोफी शॉप है जो पूरे अमेरीका महाद्वीप में मशहूर है- “स्टार बक” इसकी कई ब्रांच्स हैं! अब भारत में भी खुल गयी है! पढ़ा था की भारत के महा नगर में एक भारतीय यंग लड़का उसमे काफी पीने गया उसने सोचा की काफी पी कर आनद के साथ सो जाऊँगा, नींद अच्छी आयेगी, बिल देखा तो एक कप मात्र के १५०/- रुपये? उसने जिक्र किया बिल देने के बाद मै रात भर सो ही नहीं पाया! विकास के लिए हम सो ही नहीं पायें तो क्या ऐसा विकास हमें चाहीये की नहीं? लेकिन हम इसके बिना पिछड़ भी तो जायेंगे? क्या करें और क्या न करें? यही है दुख का कारण !
यहाँ बेटा या बेटी जब १५-१८ साल के बीच की उम्र की हो जाती है तो उसे आत्म निर्भर होने के लिए अपना कमाना खाना और रहना भी सीखना पड़ता है, और वह नौकरी करके और साथ-साथ पढाई करके किसी ‘बाय फ्रेंड’ के साथ रह सकती है, अब बताईये ऐसे में बाप और माँ के साथ आत्मीयता की बात कहाँ से आ सकती है? बचा जब ४-५ साल का होता है तब से अलग सुलाने की परम्परा है इसके चलते इन बच्चों और अनाथ बच्चो में फर्क किया जा सकता है? कहाँ से आ सकती है आत्मीयता और अपनत्व?
हम मरते दम तक अपनी औलाद को दुखी नहीं देख सकते चाहे कैसी भी औलाद हो , भले ही वो हमें कितना भी दुत्काराते रहें! जब की विकास के साथ ये सब छूट जाएगा! इनके अलावा और भी तमाम बातें है जो सब जानते है! पोस्ट के विस्तार के भय से उनका जिक्र करना नही चाहूंगा!

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