आज हमें खुशी है कि हमारे ब्लोगर साथी श्री सत्य शील जी के ब्लॉग “वृद्धाश्रम और सामाजिक संकोच ” शीर्षक को जागरण अंक में विशिष्ठ स्थान मिला है ! वे हम सभी के और सही में धन्यवाद के पात्र है! हमारे देश में यूं.पी सबसे बड़ा प्रदेश है जाहिर है कि यहाँ समास्याए भी बहुत होंगी ही! जनता की मांग, और जन प्रितिनिधियों के दबाव के कारण जनता की सुविधाओं के लिए सरकार तमाम उन साधनों की सहूलियतें प्रदान करती है! जिससे उन्हें और जरूरतमंदों को राहत मिल सके! जैसे वृधाश्रम,गरीबो के लिए या पिछड़ों के लिए होस्टल्स, युवकों तथा युवतियों के लिए यूथ होस्टल्स,नारी निकेतन ,विधवाश्रम आदि-आदि! सरकार ने सबकी व्यवस्था तो कर दी है और इनके लिए फंड्स भी देती है पर क्या इन सबका सही रख रखाव, व उपयोग हो पाता है? या हो पारहा है ,जवाब है नहीं, बिलकुल भी नहीं! सरकार सब जानती भी है पर एक बार कोई संस्था खुल जाये तो उसको बंद कर पाना सरकार के लिए मुश्किल ही हो जाता है, सो सरकार भी सोचती है की चलने दो जैसा भी चल रहा है ! सरकार को इससे और भी तो आवश्यक काम है! फिर ऐसी संस्थाओं के लिए उसके पास और भी सहयोगी है तो! अब यदि ये सहयोगी अपना काम नहीं कर पाते तो क्या करे सरकार? (जैसे आजकल सलमान खुर्शीद जी ने विकलांगो की राशि का सही उपयोग किया?) हम आगरा की इन सब संस्थाओं को जानते है यहाँ की तरह सब जगहों की हालत एक जैसी ही होगी ! आगरा यूनीवर्सिटी हास्टल के पास ही पिछड़ों के लिए हास्टल खोला गया है, इसमे केवल अवांछनीय तत्वों का जमघट लगा रहता है, यहाँ लोगों के द्वारा शराब का अड्डा बना हुआ रहता है और वे लोग काबिज रहते है जिन्हें इसंमे नहीं होना चाहीये, फिर आये दिन मवाली लोग हो हल्ला करके पास ही यूनीवर्सिटी के छात्रों की पढाई में व्यवधान पैदा करते रहते है! इसी तरह सजय प्लेस में यूथ हास्टल का भी हाल कुछ ऐसा ही है,यहाँ पर भी और अव्यवस्था का आलाम ही रहता है,कर्मचारी काम पर आते नहीं औए व्यवस्थापक बेबस रहता है! अब रही बात विधवा आशरमों और नारी निकेतनों की यहाँ भी जो सर्वे सर्वा बने होते है/बनी होती है , वे या फिर महिलाए जो इनका काम देखती हैं, दलाल बन कर इन लड़कियों और युवतियों की सप्लाई का काम करती है , तो बताईये सरकार करे तो क्या करे? यदि कोई अपने प्रभाव से यहाँ का जिम्मा ले भी लेता है वह आगे चलकर गोपाल कांदा, या मद्रेना नहीं बन जाता है? हमारे ब्लॉग समूह के साथी ने अपने ब्लॉग में कहा है की इनकी महत्ती आवश्यकता है इसलिये इन्हें और उन्नत बनाया जाए,सही होकर भी सरकार के लिए यह आसान नहीं है! जहां-जहां ये संस्थाए काम कर रही हैं उनके आरम्भ में तो सब कुछ ठीक होता है, पर धीरे- धारे इनकी देख- भाल में कमी होती जाती है और न ही अनुशासन बना रह पाता है! यहाँ असामाजिक तत्वों का ही जमवाडा बना रहता है, प्रायः यहाँ व्यव्थापक गायब रहता है और लोग यहाँ जुए और शराब का अड्डा बना लेते है और जो इसके लिए अनुमत नहीं होते वे आकर रहते है तथा जरूरतमंदों और योग्य लोगों को जगह नहीं मिल पाती! हालांकि इस सब के लिए व्यवस्थापक रखे हुए हैं पर वे बेबस ही रहते है! हर सरकार का फर्ज है की जनता को सुविधाएं मुहैया करवाए पर जब रक्षक ही भक्षक बन जाए तो कोई क्या कर सकता है? इस सम्बन्ध में आगरा महानगर में जो हालात है उसको बया करने मे दुःख तो होता है, पर कहने को विवश होना पड़ता है, कारण की यह पैसा है तो हमारा, जिसका सही उपयोग हो ही नहीं रहा है! हम सब इन संथाओं के पक्ष में है, पर सही और उचित व्यवस्था के अभाव में नहीं, जो की अपने बेईमानों के रहते संभव है ही नहीं!
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