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हे भगवान,याखुदा,ओह माय गाड ??

सपाटबयानी
सपाटबयानी
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हम कितने भी विकसित क्यों न हो जाए, कितने भी उच्च शिक्षा प्राप्त क्यों ना हो जाएँ ,पर यह कि ‘भगवान’ है की नहीं, वो कैसा है, कहाँ रहता है,आदि ऐसे सरल या कठिन कुछ भी कहे, विषय की खोज नहीं कर पायेंगे?, न ही एक मत हो सकेंगे! यह विषय ही ऐसा है जो अंतहीन निर्णायक बन कर रह जाता है! इस में हम किसी पर दबाव भी नहीं बना सकते है, पर कुछ भी कहे हम अपनी बात कह सकने की तो बुद्धि रखते ही हैं! दूसरे माने या न माने हम उन्हें भी कुछ नहीं कह सकते!सही भी है यदि ऐसे लोग नहीं होंगे तो ये प्रवचन- दाता कहा जाएंगे? कैसे चलेगा इनका काम?
इस सम्बन्ध में मेरे विचार ये है, और इस प्रकार है–
भगवान है और उसकी सत्ता है यह निश्चित मानता हूँ और उसकी सत्ता के सिवाय यह संसार चल ही नहीं सक़ता! उसके चाहने के बिना पेड़ पर लगा पत्ता हिल ही नही सकता! पर यह भी मानाता हूँ की वह मंदिर ,मस्जिद ,गुरुद्वारे तथा चर्च या अन्य किसी देवालय में न होकर हर इंसान के भीतर है! जब भगवान् हर इंसान के अन्दर है तो ऐसे सभी इंसान भगवान ही हो जाते है और है ही! तभी तो महात्मा कबीर जी ने सरल भाषा में कहा है की–“बंन्दे मोहि कहाँ ढूंढें, मै तो तेरे पास में, न मै मंदिर , न मै मस्जिद, न काबे कैलास में”! मन के अन्दर है तो फिर क्यों हम गलत काम करते है या कुछ लोग सही काम करते है ? जब की सब के मन के अन्दर भगवान विराजते है? इसका बतलब तो यही हुआ कि गलत भी भगवान ही करवाते या करते है? यहा एक बात और समझाने के बाद हम इस निर्णय पहुँच सकते है! और इसका उत्तर पा सकते है! भगवान हर बन्दे के अन्दर विराजते तो है लेकिन उस बन्दे के अन्दर नहीं, जो समाज में तो रहता है पर दूसरो के दर्द नहीं समझता,दूसरों को सदैव ही दुःख देता है, सताता है, किसी की सहायता के लिए तत्पर नहीं रहता,धन के लोभ में गलत कार्य करता है,घटतौली कर, मिलावट कर धोखेबाजी में लिप्त रहता है, माँ बाप की सेवा और जरूरत मंदों की सेवा से दूर ही रहता है, दिखाने को धर्मात्मा बने रह कर सदाचारी बनने का ढोंग करता रहता है! ऐसे बन्दों से भगवान् दूर ही रहता है,या कहें की उन के अन्दर में वह वास नहीं करता! इस तरह वह भगवान् नहीं है, भगवान् रहित आदमी ही होता है ,सिर्फ आदमी ही रहता है जो सदैव ही एक मांस का लोथरा बन कर जीता है !
अब सवाल आता है कि क्या भगवान् किसी कि परेशानियों मे सहायक होता है कि नहीं? इसके जवाब में कहना चाहूँगा की वह आपको राह बताता है, कर्म तो आपको ही करना होता है! जैसे श्री कृष्ण ने अर्जुन को कुर्क्षेत्र में राह बतायी थी, लड़ाई तो पांडवो को ही करनी पढी थी!
जब कोई आदमी परेशान हो तो उसे भगवान् से यह नहीं कहना चाहीये कि मेरी सहायता करो, और खुद जाकर निशचिंत हो कर सो जाए, बल्कि यह कहना होगा की मुझे इतनी शक्ति और राह सुझाओ कि मै इन परेशानीयों का सामना कर सकूं! तभी तो यह शिक्षाप्रद गीत ही सार बन सका है—

“इतनी शक्ति हमें देना दाता,
मन का विश्वास कमजोर हो ना
हम चले नेक रस्ते पे हमसे,
भूल कर भी कोई भूल हो ना ”

और इसी तरह, भेड़ चराने वाले गदारीये को बुद्धि देता है की जंगल में वह अपनी भेडों की रक्षा कैसे करे, न कि शेर आने पर वह चराने वाले के स्थान पर खुद ही आ जाएगा?हाँ उसे संकट के समय युक्क्ति सुझा सकता है और सुझाता है!
अब यह की भगवान है तो दिखाई क्यों नहीं देता? हम भगवान को परमेश्वर, ईश्वर, दाता, खुदा,अल्लाह ,यीशु ,गाड और गुरु नानक साहिब अलग-अलग नामो से जानते है, पर है एक ही शक्ति के अलग-अलग नाम! यह अगम,अगोचर,सूक्षम,निर्विकार निराकार ,सर्व शक्तिवान,सुन्दर,साँचा और सर्वत्र व्याप्त है! इसलिए कैसे दिखाई देगा?
भगवान के इस प्रकार के रूप के कारण ही यह विषय अंतहीन बहस और विवादित हो गया है! अब यह कैसा है ,कहा है, किस रूप में है? बहस का हिस्सा बन गया है ! यह पहले भी अनुत्तरित था, आज भी है और भविष्य में भी रहेगा! धर्म परायणता के कारण लोग इस पर बहस करना पाप समझते थे, अब तथाकथित विकसित हो जाने के कारण यह बात बहस का हिस्सा बन गयी है, हमारे दुखों का कारण भी शायद यही है!

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