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कल की खबर सुन कर हम सब फिल्म प्रेमी आहत हुए है की हास्य कलाकार,दिलखुश और इंजीनीयर श्री जसपाल भट्टी का देहान्त हो गया! बहुत ही बड़ा झटका लगा यह सुनकर! और तो और यह हादसा तब हुआ जब वे अपनी फिलम के प्रोमोशन के लिए अपने राज्य पंजाब के मोगा नगर से जालंधर जारहे थे! आज कल अब यह समय आ गया है की निर्माता,निर्देशक और हीरोज को फिल्म के प्रोमोशन के लिए खुद ही रस्साकस्सी करनी पड़ती है!
एक समय था की कोई भी इस प्रकार के प्रोमोशन की चिंता ही नहीं करता था, सब अपने आप ही चलता था, छोटे बजटों की फिल्मे हुआ करती थी, कोई कम्पटीशन नहीं हुआ करता था, सो कोई चिंता ही नहीं करता था! बस कोई फिल्म आयी किसी हाल में लगी बस! ज्यादा हुआ तो कुछ पोस्टर और बोर्ड पर लिख और पेंटिग कर रिक्शा पर पूरे बाजारों में बैंड बाजों के साथ घुमाकर सब मे प्रचारित कर दिया! कभी-कभी इसके पर्चो फेंक कर बांटने की प्रथा थी! तब हम बच्चे थे और इन पर्चो को लेने के लिए दिन भर इन्हें लूटने मे लग जाते थे! अच्छा लगता था!
इसके बाद ज़माना आया , सिनेमा हाल में जो फिलम लगती थी उसके बोर्ड होटल्स , चाय और पान की दुकानों पर लगा दिए जाते थे ताकि लोगो को मालूम हो की कौन सी फिलम कहा लग रही है! इन बोर्ड़ को लगाने वाले सिनेमा के मालीक इन होटल्स और चाय -पान वालों को फ्री पास देते थे! ये पास वे लोग बेच भी देते थे या खुद फिलम देख आते थे! प्रचार और प्रोमोशन का ये भी पुराने जमाने का तरीका हुआ करता था! तब समाचर पत्रों में इस सम्बन्ध में कोई विज्ञापन नहीं दिया जाता था!
बदलते जमाने में जब बड़े बजटो की फिल्मे आन्ने लगी और बहुत गलाकाट स्पर्धा के कारण प्रचार का तरीका ही बदल गया! अब बड़े-बड़े स्टार्स खुद नकलते है अपनी फिल्मो के प्रचार के लिए! इसमे तीनो या चारो खान भी सबसे पहले इसकी शुरुआत को निकल कर परम्परा की नीव डालने वाले साबित हुए! और टॉप की हीरोइने भी इसमे भाग लेकर प्रोमोशन का काम करती है! ये केवल महा नगरो में ही जाते है और नगरो में अब समाचार पत्रों में ही दिए जाने का रिवाज हो चला है वैसे भी अब कौन देखता है, इन फिल्मो को सिनेमा हाल्स में? घर पर ही बैठ कर देखने पर पैसा भी बच जाता है ! यही है प्रोमोशन्स की आधुनिकता!
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