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अभी-अभी दशहरा बीता है और रावण के जलाने और क्यों जलाने तथा बार-बार जलाने के औचित्य पर सवाल बहुत ही तेजी से उभर कर सामने आ रहे है! क्या हम इसे यह माने की अब हम पहले से अधिक पढ़-लिख गए है,विकसित हो गए है ,इसलिए ये सवाल उठा रहे है?
मुझे अच्छी तरह याद है, आज से ५० साल पहले जब दशहरा हुआ करता था तो ‘आगरा’ में एक ही जगह पर रामलीला मैदान पर इकट्ठा हुआ करते थे और इसे देखने लोग दूर-दूर से ‘आगरा’ जो आते थे, आज हम विकसित हो गए है, आज हर जगह ही इसे मनाने की प्रथा बन गयी है! हर गली,मोहल्ले में इस रावण को जलाने का रिवाज हो गया है! तभी से यह आवाजे भी उठने लगी है की ‘क्यों मुझे जला रहे हो?’ , ‘बार बार क्यों जलाते हो?’, ‘मैंने पाप तो एक ही बार किया था?’ आदि-आदि! तब हम छोटे थे,इसे मेले के रूप में लेकर आनंद लेते थे और इनके अन्य पक्षों की और किसी का भी ध्यान नही जाता था! बस कह दिया गया की रावण पापी था सो भगवान राम ने उसका वद्ध कर दिया बस!
अब हम हर बात को तर्क की कसौटी पर कसने के बिना कोई बात यूं ही मानने को तैयार ही नहीं होते , जैसे लंका सोने की थी, तो क्या सोने में आग लगाई जा सकती है ?, अग्नि पर से गुजरने के बाद यह कैसे संभव है की कोई बच कर आ जाए आदि–आदि ! सो यह रावण जलाने की प्रथा पर सवाल उठने लगे है! और तो और अब ये दशहरा अमेरीका में भी मनाने लग गए है जहा भारतीय रहते है! मंदिरों के महंतो की रोजी – रोटी भी तो चलनी चाहीये न? अमेरीका में ‘ भारतीय हिन्दू टेमपल’ बहुत बड़े क्षेत्र में है, बहुत बड़ा एरिया है इसका, सच मानिये भीड़ को संभालने के लिए पुलीस को पहली बार ही बुलाना पडा था! आप इससे अंदाज लगा सकाते है की कितनी ना चढ़ावे की बारिश हुई होगी, और वह भी डॉलर्स में? जब आमदनी का साधन है तो क्यों न चलने दे और अन्ध विशवास को बढावे से तो लाभ ही लाभ है!
आरम्भ से ही भारत के दक्षिण राज्यों में रावण को जलाने की प्रथा नहीं है ! रावण ज्ञानी विद्वान् और तमाम शक्तियों के ज्ञाता थे, वे अपने बल और बुद्धि से ,तमाम यज्ञो द्वारा सफलता हासिल करके देवतों को खुश कर सके थे, इसलिए वे पूज्य होने चाहीये! क्या पूजनीय को इस तरह जलाना उचित है वह भी बार- बार, हर साल, हर गली मोहल्ले में ? यह विद्वान् का अनादर नहीं है? फिर कितना न प्रदूषण होता होगा? इस पर अगर कोई कहे तो धार्मिक भावनाओं पर ठेस पहुंचाने वाली बात का बहाना हो जाता है! सो सभी है चुप!
हाँ अगर रावण को जलाने से यह अर्थ लिया जाए की अपने अन्दर के रावण को जलाना! अपने अन्दर की दूषित प्रव्र्तियो को जलाना है, जिसके तहत आजकल के असामाजिक तत्व बलात्कार और समाज में तमाम बेहूदा काम करते है तो इसे सही माना जा सकता है, लंकेश रावण को अब जलाना बंद कर देना चाहीये! तो कुछ-कुछ सही लग सकता है! भारत के बुद्धिजीवी यदि इस पर विचार कर कोई कदम उठा सके तो यह बहुत बड़ा योगदान हो सकेगा समाज को सुधारने की दिशा में!
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