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“आधुनिक बहुओं” की जमीनी हकीकत??

सपाटबयानी
सपाटबयानी
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पारिवारिक रिश्तो पर सत्यशील जी, के ब्लॉग को पढ़कर आज मै ‘बहुओं की जमीनी हकीकत’ विषय पर कुछ विचार देने पर विवश हो रहा हूँ! इससे भारयीय महिलाए और विदेश में रहने वाली भारतीय महिलाए,जो पिछले ५-१० साले में विदेश में गयी है , नाराज जरूर होंगी, इसलिये पहले उनसे माफी मांग लेता हूँ! यह वैसे ही माने जैसे महात्मा तुलसीदास ने रामायण लिखने से पहले उन लोगो की वन्दना पहले कर ली, जिनसे उन्हें ज्यादा डर था!
पहले मै अमेरीका में रह रही बहुओं के बारे में उनकी अकेले रहने की इच्छा को व्यक्त करूंगा,जिससे आप को लगेगा की भारत में कितना भी सासे उन्हें महत्त्व दे, वे बिलकुल ही नहीं चाहेगी की पति के सिवाय कोई और ससुराल का प्राणी उनके साथ रहे! चाहे भारत में या फिर अमेरीका में?
यहाँ अमेरीका में आये दिन भारतीयों के यहाँ आना- जाना लगा रहता है,मैंने अपने अलिखित सर्वे है से जो जाना और पाया है उसके अनुसार जो आई टी फील्ड मे काम करते है और जिन्हें यहाँ भारतीय मुद्रा के अनुसार लगभग ३,५०,०००/- से ५,००,०००/- रुपये प्रति माह मिलते है , उनसे पूछने पर पाया की उन्हें यदि भारत में १,००,०००/- से १,५०,०००/- प्रति माह मिले तो क्या वे भारत जाना पसंद करेंगे? ( अमेरीका के ३.५– ५ लाख, भारत के १–१.५ लाख के बरार्बर हो जाता है ) अधिकाँश का जवाब था की हां! पर उनकी पत्नियों ने इससे असहमति ही जताई!
इसका कारण जो मैंने जाना वह इस प्रकार हो सकता है—यहाँ ये बहुए खुलकर अपने अनुसार रहती और खाती,पीती और घूमती है जिस तरह के वस्त्र पहनती है वे भारत में पहनना संभव नहीं होगा,चाहे सभी के साथ रहे या फिर अलग! समाज की भी तो कुछ मर्यादाए होती है की नहीं? क्या भारत में आधुनिक दिखने के लिए पहने जाने वाले कपडे पहने जा सकेंगे? मसलन की स्कर्ट,कमीज,पूरी की पूरी टांगे दिखाने वाले टौजरस ,आदि-आदि! फिर यहाँ सर पर पलू और उसको संभालने का झंझट तो है ही नहीं, कहा मुसीबत मोल लेती फिरेंगी ये बहुए? और तो और उन्हें कोइ टोकने वाला ही नहीं है यहाँ कोई! जैसे चाहे रहे, करे भी जैसे चाहे! सब बिना फ़िक्र के! सो ये बहुए नहीं चाहती की वे या उनके पतिदेव नौकरी छोड़ कर भारत जाए! मरजी हुई तो खाना बनाया ,मरजी हुई तो नहीं बनाया! तमाम खाना जो इन्हें पसंद है, उठायी कार और ले आये पीजा,वेंडी, सबवे, बर्गार ( अमेरीका के ये आईटम ऐसे है जैसे अपने यहा समोसा, कचौड़ी, दोसा और इडली आदि! ) और ना जाने क्या- क्या खाया और सो गए! कोई झंझट है ही नहीं! क्या कर रही है कौन है देखनेवाला? मन की मालकिन और कान पकड़ी भेड़ सा नौकर, जिसे हम उनका पति कहते है! उन्हें नाम से तो बुलाती ही है फिर संबोधन नौकारो सा! क्या यह सब चलेगा भारत में? ये पति भी जानते है की इनकी वक्र दृष्टि से बचो वरना घर को कौन देखेगा और मुसीबत से बचकर ही रहने में कुशल सम्मझते है! शादी से पहले जब अकेले रहते थे तो खाना पकाने की कला में भी प्रवीण हो जाने के कारण अब ये पत्नी के नाराज हो जाने पर खाना भी बना लेते है और बनाते है! बल्कि अपनी पत्नियों से बेहतर बना लेते है! तो यह उन बहुओं की बात है जो यहाँ नौकरी नहीं कर सकती,बाकी जो नौकरी मे है उनका अंदाज तो आप खुद ही लगा सकते है!
यहाँ रहने वाले बेटों की एक विशेषता तो है ,उनकी दिली इच्छा होती है की अपने माँ-बाप को हर साल कुछ समय के लिए यहाँ बुलाये,और बुलाते भी है, उन्हें अपने माँ -बाप के आख़िरी समय में खुश देखने की चाह भी रहती है! भारतीय संस्कार इसे ही तो कहते है! और तो और अपने माँ-बाप्प को बुलाने पर उन्हें यहाँ के आयकर में इतनी सारी छूट मिल जाती है की उनकी टिकट के खर्च के बराबर पैसे के खर्च की भरपाई हो जाती है, सो यह कहावत चरीतार्थ हो जाती है की “हिंग लगे न फिटकरी, रंग चोखा आये”
मैंने एक दुखी और बहुत ही समझदार भारतीय से जाना , उनकी जबानी सुन ले! “जब मेरे माँ-बाप आते है तो मेरी पत्नी उनसे बात तक नहीं करती जब की उसे मालूम है की वे दो-चार महीने के बाद चले जाने है! बताओ क्या करू इस बीवी का अंकल जी?” क्या न वेदना है और क्या न अपनी पत्नी का आचरण है, जिसे आप बहू कहते है? ये बहुए अपनी सास के घर को अपना घर नहीं मानती और अकेले रहने वाले घर को ही अपना मानती है,तभी इनके तेवर ऐसे हो जाते है!
अब ही आप बताईये की क्यों ऐसी पत्निया/बहुए जाना चाहेंगी भारत में? यह है आज- कल की बहुओं की जमीनी हकीकत! बाकी आप भारातीय बहुओं की हकीकत जानते ही होंगे! उनके बारे में और जानना चाहे तो साहित्यकार हरीशंकर परसाई जी की एक कहाँनी है “वापिसी” जरूर पढ़े!
अंत में मै कहना चाहूँगा की सब एक जैसी नहीं है, लडकीया,आधुनिक बहुए और औरते! मेरी बातो का बुरा न माने, मैंने जो देखा है,जो पाया है और जो मित्रो को सहते हुए अनुभव किया है,उसके बारे में में लिखा है मै किसी की भावनाओं कोठेस नहीं पहुंचा रहा हूँ, फिर भी आपके विचारों से मेरे विचार मेल नहीं भी खा रहे हो तो क्षमा प्रार्थी हूँ!
आप इसे कभी भी मेरी व्यथा न समझे, वरना मेरी बहुओं के साथ न्याय नहीं हो पायेगा! यह इसलिए लिखना पड़ा रहा है क्योंकि अक्सर लोग समझते है की यह अपना ही दुःख बता रहे है, सो ऐसा बिलकुल भी नहीं है! इस मायने मुझसे ज्यादा और कोई भाग्यशाली है ही नहीं, कारण कुछ भी हो सकता है!

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