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दीपावली पर चांदी और सोने के सिक्के ??

सपाटबयानी
सपाटबयानी
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अब दीपावली आ गयी है! आपको धनतेरस पर तमाम लोगो को उपहार स्वरुप कुछ न कुछ देने के लिए सोचना है! आजकल न जाने लोगो के पास कहा से इतना पैसा आगया है, की हर आदमी धनी से और धनी हो गया है! पहले जो स्टील के बर्तन खरीदता था अब वह चांदी के सिक्के और जो चांदी के सिक्के खरीदता था अब वे सोने के जेवरात या सिक्के खरीदता है! अब और तो और कुछ धनी लोग हीरो के जेवरातो पर आ गए है क्योंकि यदि वे भी सोना खरीदेंगे तो काहे के धनी कहलायेंगे? सो दिखावे की चाह में वे ऐसा करते है! इसलिए कुछ हट कर दीखने चाहीये न! अब अपनी मालदारी को दिखाने के लिए अपने नाम के साथ गणेश और लक्ष्मी के सिक्के भी बनवाकर अपने प्रिय जनों को उपहार स्वरुप देते है! यह अच्छी परम्परा भी है और जब दीपावली पर नकली मावे के प्रचलन का हो हल्ला होता है तो कैडबरीज चाकलेट क्या देना, सो ये लोग चांदी के सिक्के देने लगे है!
दीपावली के अवसर पर बाजार में ये दुकानदार तो नकली चांदी से असली चांदी बनाते है, मतलब की बाजार में कई तरह के सिक्के बिकते है , कुछ लोग ९०% के, कुछ लोग ८०% के, तो कुछ लोग असली और शुद्ध चांदी के कह कर बेचते है,और तो और कई लोग नकली चांदी के सिक्के भी बेचते है और लोग धोखे में ठगे जाते है ! ये दुकानदार यह भी कह देने से नहीं डरते की आप जब भी वापिस करना चाहे तो ५ या १०% काटकर वापिस पैसा ले जा सकते है! अब बताईये की क्या ये लोग सिक्को को वापिस करने के लिए लेते है या फिर उपहार स्वरुप देने के लिए और फिर कब याद रहता है की किससे खरीदा था? आप यदि इन्हें लौटाने भी जायेंगे तो ये कह देते है की यह आपने हम से खरीदा ही नहीं था! दुकानदार रसीद तो देते नहीं है और माँगने पर टैक्स का भय दिखाकर और लूटने की कोशिश करते है! सो लोग इस अतिरिक्त पैसे के बचाने के लिए यह झंझट नहीं मोल लेते?
ध्यान रखे, दीपावली पर आप चांदी के मूल्य में स्टील ही खरीद रहे होते है और यदि आप स्टील ही खरीद रहे है तो चांदी के पैसे क्यों दे? तो आप यह चांदी के सिक्को को खरीदने का विचार छोड़ ही दे, तो आप लुटने से तो बच सकते है!
अब हम आते है सोने की बात पर! औरतो के शौक ने मर्दों को कही का भी नहीं रखा,अपनी घरवाली की जिद में आकर धनतेरस पर जेवरात को खरीदने और सहेलियों को दिखाने के अलावा और कुछ भी नहीं है! कारण की रोज्मरा में तो आप पहनते ही नहीं है इन्हें! बाजार में चेन स्नेचिंग का भय जो रहता है! फिर यह अंधविश्वास की धनतेरस पर कुछ न कुछ खरीदना जरूरी है, नहीं तो लक्ष्मी का आगमन कैसे होगा?
आजकल बाजार के अलावा बैंको में भी सोंने के सिक्को के बेचने का फैशन हो गया है और विशवसनीय ब्रांडो, तनिशिक जैसे विक्रेता भी बाजार में है! ये भी कम लुटेरे नहीं है,बैंको की साख है तो पर ये बाजार के सोने के दामो से पैसा ज्यादा लेते है, दूसरी बात यह है की अपना माल कभी भी वापिस भी नहीं लेते और आप बाजार में जायेंगे बेचने तो ये लोग इन बैंको का सोना लेकर कम ही पैसा देने को तैयार होते है! कुल मिला कर आप को घाटा रहेगा!
आपके ज्वेलर्स भी आपको २२ कैरट का कह कर कुछ और कैरट का जेवर देने से नहीं चूकते! इसमे तो बड़ी चोट ही लगती है! इन ज्वेलर्स की दुकानों में शान शौकत तो देखे, ड्रेस- कोड में सुन्दरीयो को रखना, दुकानों की चमक धमक से आप वाकिफ ही है, जाते ही आपको सलूट और काफी या कोल्ड ड्रिक से स्वागत,दरबान का बन्दूक लिए खडा रहना क्या न ठाठ है, इन ज्वेलर्स के? दुकानदार यदि शौक़ीन है तो इन बालाओं के साथ रात को होटलों में डिनर पर जाने का खर्च, सब कहा से आता है? यह सब आपसे बे ईमानी करके ही ऐश किया जाता है! आज के दिन साख वाले भी लिहाज नहीं करते, सो कहावत है की ” भेड़ तो जहां भी जायेगी, मुड़ेगी ही ” यदि आप मुड़ने से बचना चाहे तो कम से कम धनतेरस पर तो न जाए अपने आप को मुड़वाने! बाकी आप जाने आपका काम?

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