आजकल विज्ञापन का ज़माना है! यह कई तरह के होते है और अपने लाभ के लिए लोग इसका प्रयोग करते है और करना भी चाहिये! एक विज्ञापन अपने प्रियजनों की पुण्यतिथि के भी दिए जाने का रिवाज बन गया है ! जिसे देकर ये जन अपनी संवेदना को प्रकट करते है! पर यदि इस दिन कोई कार्यक्रम नहीं किया जाता है, केवल उनकी तस्वीर सहित फोटो ही देकर इसकी खानापूर्ति कर यह दिखाते है की हामारा फला-फला जन गुजर गया था और हम उन्हें याद करते है आदि, तो यह केवल समाचार पत्रों को पैसा देना ही है! रही अपने प्रियजनों को याद करने की बात तो इस प्रकार के विज्ञापनों के बिना भी याद किया जा सकता है! इसके लिए समाचारों में देकर आप शायद लोगो को ही बताना चाहते है,और कुछ भी नहीं! क्योंकि यह पैसा थोड़ा बहुत न हो कर कम से कम दो-तीन हजार तक और अधिक तो हजारो तक हो सकता है ,यह इस बात पर निर्भर करता है की आप विज्ञापन कितना बड़ा,किस तरह या फिर किस समाचार पत्र में देते है! इससे क्या लाभ होता है, समझ से बाहर है! क्या यह अच्छा न हो की यह पैसा किसी अनाथाश्रम में दान- स्वरुप दिया जाय? या गरीबो में वस्त्रो को बांटा जाय या फिर भूखो को खाना खिलाया जाए? या आसराविहीनो को आसरा देने में मदद की दिशा में खर्च किया जाय? क्योंकि केवल समाचार पत्र में देकर आपको कोई पुण्य तो मिलता नहीं,यदि इस पैसे से आप कोई जन सहायता में कदम उठाते हुए काम करते है तो जरूर पुण्य मिल सकेगा! अन्यथा यह पैसा उनको मिलता है जो पहले से ही धनी है,अखबार वाले! मेरा उद्देश्य किसी की भावना को ठेस पहुंचाने का नहीं है! आप ज़रा सोच कर देखे की क्या यह विचार सही है और है तो कितना?
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