एक पोस्ट पढी थी वह डाकतरो पर थी! कई सवाल थे उसमे ,जैसे क्या आप अनावश्यक परीक्षण लिखते है कमीशन के चक्कर में?, क्या महंगी दवाईया लिखते है , और जरूरत न होने पर भी मरीजो को आपरेशन के लिए कहते है? आदि! इसी तरह टीचर्स के बारे में ये सवाल की क्या आप वेतन लेने पर भी पढ़ाते नहीं है?, क्या आप कालेजो में राजनीति नहीं करते है?, क्या लड़को पर ट्यूशन का दबाव बनाते है?, क्या आप पैसे ले कर मार्क्स नहीं बढाते है,क्या आप लड़कियों को पढ़ाते कम और उनके शारीरीक रचना पर ज्यादा ध्यान नहीं देते, उनसे अश्लील हरकते नहीं करते, आदि-आदि! यह सही है की इन सब प्रशनो के उत्तर सब जानते है, इनके द्वारा ऐसा किये जाने का कारण भी आप सब जानते है! पर मै किसी का पक्ष न लेते हुए ब्लोगर्स से यह जवाब चाहता हूँ और आपसे पूछना चाहता हूँ कि क्या कोई सुझाव दे सकते है आप लोग? की इसे कैसे सुधारा जाए? मै यहाँ किसी का पक्ष नहीं ले रहा हूँ? पर डाक्टर्स या टीचर्स की बातो का जो रुख है उसे लेकर बताना चाहता हूँ की वे क्या कहते है ? इन का कहना है की जब हम लोग किसी काम से कही जाते है तो क्या ये हमें नहीं लूटते? क्या रिक्शावाला ३५/- के बदले १००/- नहीं वसूलता? हमें स्टेशन जाना है उसे मालूम है, क्या उसका फ़ायदा नहीं उठाते है ये लोग? क्या कोई डाक्टर या और कोई हमसे ज्यादा से ज्यादा वसूलने से बाज आता है? यदि नही, तो हम क्यों छोड़ दे? यदि ऐसा करेंगे तो हमारा काम कैसे चलेगा? बात में दम तो है, पर यह सिलसिला कही ख़त्म होगा की नहीं? आप सुद्धीजन कोई रास्ता बता सकते है, सुझा सकते है तो बताईये, क्योंकि इस बेईमानी से सब त्रस्त है! आपके सही मार्ग दर्शन से शायद कोई हल निकल कर समाज को लाभ मिल जाए?
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